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प्रसन्न पितरों ने वर मांगने को कहा तो उसने अपने मनोनुकूल पत्नी प्राप्ति का वर मांगा. पितरों ने कहा, ‘तुम्हें शीघ्र ही एक दिव्य मनोहर पत्नी प्राप्त होगी. ऐसा कहकर वे अंतर्धान हो गए.

महात्मा रुचि पितरों की इस लीलामयी कृपा पर मुग्ध हो ही रहे थे कि उसी समय नदी के भीतर से, प्रम्लोचा नामक अप्सरा सभी सुलक्षणों से सम्पन्न एक मनोहर कन्या को लेकर प्रकट हुई.

रूपवती अप्सरा प्रम्लोचा रुचि से प्रार्थना करने लगी- महात्मन् यह मेरी अत्यन्त प्रिय तथा सभी प्रकार से मनोहर कन्या है, यह वरुण के पुत्र महात्मा पुष्कर से उत्पन्न हुई है. मैं इस सुन्दर कन्या को आपको समर्पित करती हूं, इसे ग्रहण कीजिये.

रुचि ने प्रम्लोचा की बात स्वीकार ली. विधि विधान से प्रम्लोचा ने कन्या प्रदान कर कहा- इससे तुम्हें एक महान् पुत्र प्राप्त होगा जो ‘मनु’ नाम से प्रसिद्ध होगा. रुचि सोचने लगे प्रलोम्चा भी वही कह रही है जैसा पितरों ने कहा था.

इसका अर्थ है कि उनका वर अमोघ-अचूक है. समय बीता और महात्मा रुचि की एक गृहस्थी बनी तो पितरों की कृपा से, संतान-परम्परा का क्रम निरन्तर बना रहा.

कुछ समय पश्चात रुचि के घर एक पराक्रमी पुत्र उत्पन्न हुआ. रुचि का पुत्र होने से वह रौच्य-मनु के नाम से विख्यात हुआ. यही रौच्य ‘मनु’ होकर संपूर्ण पृथ्वी का स्वामी बने.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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