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माता-पिता दोनों ने ही उसके भरण से किनारा किया तो मरूदगणों ने उन्हें पाला और उनका नाम हुआ भरद्वाज. भरद्वाज के जन्म के लिए दीर्घतमा के साथ अन्याय हुआ इसलिए ममता ने उसे वितथ नाम भी दिया.

भरत का वंश चलाने के लिए उनके समान ही पौरूष और तेज वाले संतान की आवश्यकता थी. इसलिए मरूद्गणों ने भरद्वाज को भरत को प्रदान कर दिया. भरत ने जन्मांध दीर्घतमा को पुरोहित बनाकर अश्वमेध यज्ञ कराए थे.

इस तरह भरद्वाज का जन्म ब्राह्मण कुल में और भरण क्षत्रिय कुल में हुआ. भरद्वाज ने भरत का वंश आगे बढ़ाया. उस वंश में रंतिदेव हुए. रंतिदेव की कथा आगे सुनाएंगे.

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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