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मैं ऋषि जमदग्नि का पुत्र भार्गव राम हूं. मैं अपने गुरु की आज्ञा से यहां तप करने आया हूं. मैं भगवान शिव की प्रसन्नता हेतु तपस्या कर रहा हूं. जब तक शिवजी मुझे यहां आकर अपने प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देते, मैं कहीं नहीं जाने वाला.

हे व्याध! यदि यह आपका राज्य है तो मैं आपका अतिथि हूं. इस नाते मैं सम्माननीय हुआ. आपको तो अतिथि की रक्षा और आवभगत करनी चाहिए. फिर मैं तो तपस्वी हूं, आपका राज्य पवित्र कर रहा हूं. आप यदि मेरे आश्रम के निकट उपस्थित रहेंगे तो मेरे तप और नियम की हानि होगी.

आपको भी इससे पाप लगेगा. ऐसे में अच्छा होगा कि आप भी दूसरे लोकों में निर्द्वंद्व विचरण करें और इस स्थान पर मुझे तपस्या करने दें. यह आपके लिए भी श्रेयष्कर होगा कि आप कहीं और जाएं.

यह सुनकर व्याध की आंखें क्रोध से लाल हो गईं. क्रोध में भरकर उसने कहा- विप्रवर आप दूसरे के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहे हैं और उसी से कह रहे हैं कि वह आप से दूर रहे. मैंने किसी का क्या नुकसान किया है, क्या बुराई की है?
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