मंगलकार्य में बांधी जाने वाली मौली या रक्षासूत्र क्या है? इसे रक्षासूत्र क्यों कहते हैं? किसने सबसे पहले बांधी, किसकी रक्षा की थी? मौली या रक्षासूत्र या कलावा से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात.

मोली या रक्षासूत्र कलावा-रक्षाबंधन के धागे

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हिंदुओं के कलाई की शान है कलावा. पुरुष हो या स्त्री सबके हाथ में बंधी दिखती है तीन रंगों की मौली या रक्षासूत्र. कलावा मौली या रक्षासूत्र को ही कहते हैं. कलाई पर बांधने के कारण इसका नाम कलावा हो जाता है. मौली या रक्षासूत्र सिर्फ कलाई पर नहीं बांधे जाते, कमर और पैरों में भी बांधे जाते हैं. यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है.

इस पोस्ट में क्या-क्या जानने को मिलेगा?

  • कलावा मौली या रक्षासूत्र राखी क्या है?
  • रक्षासूत्र को रक्षाबंधन के अतिरिक्त किस दिन बांधा जाता है?
  • रक्षासूत्र राखी बांधने का मंत्र क्या है?
  • किन-किन अंगों पर बांधा जा सकता है रक्षासूत्र?
  • बहनों द्वारा बांधा गया रक्षासूत्र साधारण नहीं है. इसने तो देवों का उद्धार किया था. बहनें ये कथा रक्षाबंधन को भाइयों को जरूर सुनाएं.
  • श्रीकृष्ण द्वारा सुनाई पौराणिक कथा- सर्वप्रथम रक्षासूत्र किसने बनाया, किसे बांधा. कैसे रक्षासूत्र के कारण हारी लड़ाई जीते देवता?

रक्षाबंधन को यह पोस्ट हर बहन-भाई के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी. साथ ही कलावा जिसे वर्ष में कभी भी बांधा जाता है उसके बारे में सारी जानकारी मिलेगी. छोटी-छोटी असावधानी हम कर देते हैं कलावा बांधने में. पोस्ट पढ़ने के बाद आप इससे बच सकेंगे.

देवताओं पर एक आपदा आई थी. देवगुरू बृहस्पति के सुझाव पर देवराज इंद्र की पत्नी शचि ने इस रक्षासूत्र के दम पर सारा खेल पलट दिया था. इस रक्षासूत्र से बारह वर्षों की लड़ाई में जीत रहे असुर अचानक हार गए. असुरगुरू शुक्राचार्य भी रक्षासूत्र की काट न निकाल पाए. सुंदर पौराणिक कथा है. श्रीकृष्ण ने आपदा में पड़े युधिष्ठिर को सुनाई थी. कथा जानने से पहले मौली से जुड़ी आवश्यक बातें जान लें.

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मौली या रक्षासूत्र है क्याः

कच्चे सूत से बनता है रक्षासूत्र या मौली.

मूलतः तीन रंगों के धागे से बनती है मौली- लाल, पीला और हरा. यह त्रिदेवों का प्रतीक है. कभी-कभी यह पांच धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है. पांच धागों से बनी मौली पंचदेव का प्रतीक है. इसमें गणेश और सूर्य भी शामिल हो जाते हैं.

मौली या रक्षासूत्र बांधने के विधान:

पुरुषों व अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए. विवाहित स्त्रियों को बाएं हाथ में मौली या रक्षासूत्र या कलावा बांधने का विधान है.

जिस हाथ पर कलावा बांधा जा रहा हो उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए.

मौली या रक्षासूत्र को सिर्फ तीन बार ही लपेटना चाहिए. मौली या रक्षासूत्र को आप कलाई पर बांधे, कमर में या पैर में, तीन बार ही लपेटना चाहिए.

मौली या रक्षासूत्र बांधने में वैदिक विधि का पालन व मंत्रोच्चार करना चाहिए.

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मौली या रक्षासूत्र कब बांधें?

पर्व-त्योहार पर मौली या रक्षासूत्र बांधना चाहिए. इसके अलावा किसी अन्य दिन बांधना हो तो लिए मंगलवार और शनिवार विशेष शुभ कहे गए हैं.

हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली उतारकर नई मौली बांधना विशेष शुभ माना गया है. उतारी हुई पुरानी मौली या रक्षासूत्र पीपलवृक्ष के पास रख दें या जल में बहा दें.

प्रतिवर्ष की संक्रांति को, यज्ञ की शुरुआत में, मंगलकार्य के प्रारंभ में, हिन्दू संस्कारों के दौरान मौली या रक्षासूत्र अवश्य बांधा जाए.

मौली या रक्षासूत्र बांधने का मंत्र:

‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।’

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मौली या रक्षासूत्र के बारे में विशेष बात:

मौली या रक्षासूत्र कलाई में बांधने पर कलावा कहलाएगी. हाथ के मूल में होती है तीन रेखाएं- ये मणिबंध कहलाती हैं. भाग्यरेखा व जीवनरेखा का उद्गम मणिबंध से होता है. इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा है. यहां महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती का भी वास माना जाता है.

मंत्रोच्चार के साथ बांधे गए कलावे के सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाते हैं. संकल्पपूर्वक कलावा या रक्षासूत्र बांधने से भूत-प्रेत, जाटू, टोना मारण, मोहन, उच्चाटन आदि से रक्षा होती है.

पवित्र अवस्था में ही मौली या रक्षासूत्र बांधना चाहिए. यदि किसी संकल्प को लेकर मौली बांधी गई और उसका उल्लंघन कर रहे हैं तो आप त्रिदेवों को अप्रसन्न करते हैं. त्रिदेवों की अप्रसन्नता से सभी देवता रूष्ट हो जाएंगे और आपकी रक्षा न होगी. ऐसे में विपत्तियां टूट पड़ेगी. इसका उल्लंघन संकटकारी सिद्ध हो सकता है.

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बच्चों को अक्सर कमर में काले रंग की मौली या रक्षासूत्र बांधा जाता है. इससे बुरी आत्मा का शरीर पर प्रभाव नहीं होता. पेट की बीमारियों से बचाव भी होता है.

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कलाई, पैर, कमर और गले में मौली या रक्षासूत्र बांधने के ‍चिकित्सीय फायदे भी हैं. इससे त्रिदोष अर्थात वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है. ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव होता है.  शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं. शरीर विज्ञान के इसी सूत्र पर आधारित है कलावा बांधना. इससे नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है.

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एक बार भगवान श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर में वार्ता चल रही थी. युधिष्ठिर भगवान से अपनी शंकाओं के निवारण के लिए प्रश्न पूछ रहे थे. उन्होंने युद्ध और नीति कौशल से जुड़े प्रश्नों के साथ-साथ व्यक्तिगत तथा समाज हित के प्रश्न पूछे.

युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा- भगवन! शौर्य और बल के अतिरिक्त क्या कोई ऐसा उपाय भी है जो मनुष्य की रक्षा के लिए विशेष रूप से फलदायी हो?

श्रीकृष्ण बोले– महाराज! रक्षासूत्र एक ऐसा उपाय है जिससे भी विजय, आरोग्य और सुख प्राप्ति संभव है. क्या आपने इस संदर्भ में शची और इंद्र की कथा नहीं सुनी?

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युधिष्ठिर के अनुरोध पर भगवान ने उन्हें रक्षासूत्र बनाने और उसे धारण करने के बारे में बताकर शची और इंद्र के संदर्भ के साथ रक्षासूत्र का महत्व स्थापित करने वाली कहानी सुनानी शुरू की.

भगवन बोले- देवताओं और असुरों में आए दिन संग्राम होते रहते थे. कई बार असुर भी इस संग्राम में विजयी हुए हैं. एक बार ऐसा ही होने वाला था, असुर देवताओं पर भारी पड़ रहे थे. प्रतीत होता था कि वे संग्राम में विजयी हो जाएंगे.

अनवरत बारह साल तक चले युद्ध के अंतिम चरण में देवताओं ने युद्ध को जीत लिया. दैत्यों, असुरों का दांव नहीं चला. वे जीतते-जीतते भी देवताओं से पराजित हो गए.

दु:खी होकर सभी असुर नायक सेनापति दैत्यराज बलि की अगुआई में गुरु शुक्राचार्य जी के पास गए. अपनी पराजय का पूरा वृतांत बतलाया.

असुरों ने शुक्राचार्य से कहा- हम युद्ध जीत रहे थे परंतु अचानक न जाने क्या हुआ. युद्ध का पक्ष ही बगल गया. हमारी जीत हार में बदल गई. पता नहीं कैसे देवता जीत गए. हमको इसका बहुत दुख है.

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शुक्राचार्य ने समझाया-आप सब वीरता से लड़े. आपका दुख अकारण है. महान योद्धाओं को दुख नहीं करना चाहिए. काल की गति से जय-पराजय तो होती ही रहती है. जय पराजय की चिंता छोड़ भविष्य की रणनीति पर कार्य करे. पराजय से मिली सीख की भी बड़ी भूमिका होती है.

दैत्यराज बलि ने कहा- गुरुवर, यदि हमें पराजय के मूल कारणों का पता लग जाए तो हम अभेद्य रणनीति तैयार कर सकते हैं. हम अभी तक नहीं जान सके कि हम पराजित क्यों हुए. कृपया आप हमारा मार्गदर्शन करें.

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शुक्राचार्य ने कहा-यह हार तुम्हारे रणकौशल की कमी के कारण नहीं हुई है. युद्ध के बारहवें वर्ष में एक ऐसी बात हुई कि तुम जीती लड़ाई हार गए. मैं तुम्हें वह रहस्य विस्तार से बताता हूं.

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