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हर्षोल्लास से भरी पाण्डव सेना ने पवित्र तीर्थो के जल से शीश को पुनः सिंचित किया और अपनी विजय ध्वजाएं शीश के समीप लहराईं. इस दिन सभी ने महाभारत का विजयपर्व धूमधाम से मनाया. कालान्तर में वीर बर्बरीक का का शीश शालिग्राम शिला रूप में परिणत हुआ. देवत्व को प्राप्त वह शीश राजस्थान के सीकर जिले के खाटू ग्राम में बहुत ही चमत्कारिक रूप से प्रकट हुआ. वहाँ के राजा ने मंदिर में उसकी स्थापना की.

उस युग के बर्बरीक आज के युग के श्रीश्याम बाबा ही हैं. आज भी श्रीश्याम बाबा के प्रेमी दूर-दूर से आकर श्याम ध्वजाएं श्रीश्यामदेव जी को अर्पण करते हैं. कलयुग के समस्त प्राणी श्री श्यामदेवजी के दर्शन मात्र से सुखी हो जाते हैं. उनके कष्टों का नाश होता है.
!! जय जय मोरवीनंदन, जय जय बाबा श्याम !! !! हारे के सहारे की जय!!

(स्कन्दपुराण के माहेश्वर खंड अंतर्गत द्वितीय उपखंड “कौमारिका खंड” की कथा)
संकलनः महावीर प्रसाद सर्राफ “टीकम”

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प्रभु शरणम्

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