मनुष्य या मनुष्य की संगति में रहने वाले ही बीमार होते हैं. आपने ऐसा अनुभव किया है? महर्षि मुद्गल के शिष्य ने इसे अनुभव किया और कारण पूछा. मुद्गल ने सुंदर निदान दिया.
महर्षि मुद्गल अन्नदान के लिए जाने जाते थे. उन्होंने स्वर्ग का सुख भोगने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उन्हें बताया गया कि स्वर्ग में सभी संपन्न हैं. वहां दान लिया दिया नहीं जाता.
मुद्गल ने स्वर्ग में रहने के स्थान पर पृथ्वी पर ही कुरुक्षेत्र तीर्थ में रहकर शिक्षा देने लगे. उनसे शिक्षा लेने की लालसा में देवपुत्र भी आते थे किंतु मुद्गल का शिष्य बनने के लिए एक कड़ी शर्त थी. उनके आश्रम में शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद व्यावहारिक सामाजिक ज्ञान पर शोध भी करना होता था.
उसके बिना गुरुकुल से जाने की अनुमति नहीं होती थी. गुरू अपनी दक्षिणा के रूप छात्रों से शोधकार्य ही कराते थे जो आगे किसी के काम आ सके.
मुद्गल का एक शिष्य शाकुंतल गुरु की आज्ञा से कई वर्ष तक देश-विदेश में घूमता रहा. भ्रमण शिक्षा का समय पूरा होने पर वह मुद्गल के आश्रम पहुंचा.
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