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विनता अपने दूसरे पुत्र की प्रतीक्षा करने लगी. इसी बीच देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र-मंथन किया. कद्रू और विनता भी मंथन स्थल पर पहुंचकर अन्य लोगों के साथ मंथन देखने लगे.

मंथन से निकले उच्चैःश्रवा घोड़े को देखकर कद्रू ने विनता से पूछा- जल्दी से बताओ इस घोड़े का रंग क्या है. विनता ने कहा निश्चय ही यह अश्वराज श्वेत है. कद्रू ने कहा- इस घोड़े का शरीर तो सफेद है, पर पूंछ काली है.

विनता ने कहा- नहीं तुम्हें दृष्टिभ्रम हुआ है. मैं शर्त लगा सकती हूं. यह अश्व पूर्णरूप से श्वेत है. कद्रू को क्रोध आया. वह विनता से बोली- यदि तुम्हारी बात ठीक हो तो मैं तुम्हारी दासी बनकर रहूंगी और मेरी बात ठीक हो तो तुम मेरी दासी बनोगी.

दोनों बहनों में तय हुआ कि घोड़े को कल समीप से देखा जाएगा. विनता यह सोचते-सोचते वापस गई कि जब अश्व पूरी तरह सफेद है तो कद्रू ने पूंछ को काला कह कर शर्त क्यों लगायी?

उधर कद्रू ने विनता को धोखे से हरा देने के विचार से अपने हजार पुत्रों को आज्ञा दी कि तुम लोग काले बाल बनकर उच्चैःश्रवा की पूंछ ढंक लो, जिससे मैं बाजी जीत जाऊं. अन्यथा मुझे दासी बनना पड़ेगा.

पुत्रों ने कहा- माता यह सरासर धोखा है और यह अनैतिक कार्य स्वीकारने योग्य नहीं है. सर्पों के इस तरह के नकार से कद्रू कुपित हो उठी. कद्रू ने अपने पुत्रों को शाप दे दिया कि तुम सभी राजा जनमेजय के यज्ञ में जल कर भस्म हो जाओगे.
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