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दमयंती ने स्वयं बाहुक की परीक्षा लेने का निश्चय किया. बाहुक को महल में बुलवाया गया. दमयंती ने बाहुक के सामने फिर सारी बात दोहराई. दमयंती की आखों से आंसू टपकने लगे. इसे देखकर नल से रहा नहीं गया.

नल बोल पड़े- मैंने तुम्हें जानबूझकर नहीं छोड़ा. न ही जुआ खेला. यह सब कलियुग की करतूत है.

दमयंती ने कहा- मैं आपके चरणों को स्पर्श करके कहती हूं कि मैंने कभी परपुरुष का चिंतन नहीं किया. यदि किया हो तो मेरे प्राण निकल जाएं.

ऐसा अद्भुत दृश्य देखकर राजा नल ने अपना संदेह छोड़ दिया. कार्कोटक नाग के दिए वस्त्र को ओढ़कर उसका स्मरण करके असली रूप में आ गए. दोनों ने सबका आर्शीवाद लिया. भीमक ने दमयंती को खूब धन देकर विदा किया.

उसके बाद नल व दमयंती अपने राज्य में आए. राजा नल ने पुष्कर से फिर जूआ खेलने को कहा तो वह खुशी-खुशी तैयार हो गया. नल को अब पासे के वशीकरण की कला आती छी. उसने पासे को अपने वश में कर लिया और जूए की हर बाजी जीत ली. इस तरह नल व दमयंती को फिर से अपना राज्य प्राप्त हो गया.  वे अपने संतान के साथ सुखपूर्वक रहने लगे.

दमयंती को देवताओं का वरदान था. अखंड पतिव्रता थी. जहां पति-पत्नी में बहुत मतभेद हो जाए. तलाक की नौबत आ जाए तो दमयंती स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. इससे मनमुटाव दूर होता है और प्रेम जाग्रत होता है. दमयंती स्तोत्र का लाभ होता है. बहुतों की आजमाई हुई बात है.

कलियुग के षडयंत्र के कारण नल के साथ और भी बहुत कुछ बीता था. ऊपर की कथा मैंने छोटी करने के लिए वह भाग निकाल दिया. वह भाग महाभारत में विस्तार से नहीं आता पर कई ग्रंथों में आता है. नल पर शनि का प्रकोप भी हुआ था. जुआ खेलने से शनि क्रोधित होते हैं. नल ने जुआ खेला था. इसका साढ़ेसाती में कड़ा दंड उन्हें भोगना पड़ा था.

आपने शनि चालीसा पढ़ी हो तो उसमें चौपाई आती है- तैसे नल पर दशा सिरानी, भूंजी मीन कूद गई पानी.  यह कहानी प्रभु शरणम् ऐप्प में शीघ्र प्रकाशित होगी. कृपया ऐप्प नीचे दिए लिंक से डाउनलोड कर लें.

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संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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