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दमयन्ती ने देवताओं को प्रणामकर कहा- राजा नल, मैं आपको ही अपना सर्वस्व मानकर स्वयं को आपके चरणों में सौंपना चाहती हूं. जब से मैंने हंसों की बात सुनी है, तभी से मैं आपके लिए व्याकुल हूं. यदि आप अस्वीकार कर देंगे तो मैं प्राण त्याग दूंगी.

नल ने दमयन्ती से कहा- लोकपालों को छोड़कर तुम मुझ मनुष्य से क्यों विवाह करना चाहती हो. मैं तो देवताओं के चरणों की धूल के बराबर भी नहीं. तुम अपना मन उन्हीं में लगाओ. देवताओं का अप्रिय करने पर तुम्हारी और मेरी मृत्यु हो सकती है. तुम मेरी रक्षा करो और उनका वरण कर लो.

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नल की बात सुनकर दमयन्ती घबराकर रोने लगी. दमयन्ती ने साफ कह दिया कि प्राण जाते हैं तो जाएं पर वह नल के अलावा किसी और से विवाह नहीं करेगी. नल ने समझाया कि मैं लोकपालों का दूत हूं. कर्तव्य से बंधा हुआ हूं. यदि मैं अपने विवाह की बात करूं तो यह अपराध होगा.

दमयंती रूपवती के साथ बुद्धिमति भी थी. उसने नल को एक उपाय बताया- आप वचनबद्ध हैं मैं नहीं. एक उपाय है. आप सभी लोकपालों के साथ स्वयंवर में आएं. मैं आपको वर लूंगी. तब आपको दोष भी नहीं लगेगा, मेरा मनोरथ भी पूरा हो जाएगा.

नल ने देवताओं को महल के अंदर हुई सारी बात बता दी.

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नल ने कहा- मैं आपसब की आज्ञा से दमयंती के पास गया. आपका संदेश दिया और दमयंती को आपसे विवाह के लिए बहुत समझाया पर उसने हठ लगा रखी है. वह मुझसे ही विवाह करेगी अन्यथा प्राण दे देगी. उसकी बात में दृढता थी. मुझे विश्वास है वह ऐसा ही करेगी. आपसब उसके असमय मृत्यु का दोष लेना चाहेंगे?

देवताओं को चिंता तो हुई पर उन्होंने आस नहीं छोड़ी. इंद्र ने नल से कहा- इसका निश्चय स्वयंवर के बाद होगा. संभव है हमारा वर्णन करने में तुमसे कोई कमी रह गई हो. कल स्वयंवर में हमें देखकर वह विचार बदल ले.

राजकुमारी दमयंती के स्वयंवर का भव्य आयोजन किया. दमयन्ती स्वयंवर में आईं. सभी राजाओं का परिचय दिया जाने लगा. दमयन्ती की आंखें तो राजा नल को खोज रही थीं.

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यह बात इंद्र समेत चारों देवता जानते थे. सभी देवताओं ने नल का रूप धारण कर लिया. दमयंती को एक साथ पांच नल दिखाई पड़े. दमयन्ती समझ गईं कि ये वही देवतागण हैं जिन्होंने विवाह का प्रस्ताव भेजा था.

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