रुद्राक्ष शिव का अंश है, शिवस्वरूप है. भगवान रूद्र के नेत्रजल से प्रकट होने के कारण इसे सूक्ष्मरूप में साक्षात शिव ही मानना चाहिए. पंचमुखी रुद्राक्ष इतनी संख्या में पृथ्वीपर क्यों पाया जाता है? पंचमुखी रुद्राक्ष क्यों हैं उत्तम रुद्राक्ष?

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रुद्राक्ष की महिमा से शास्त्र भरे पड़े हैं. ज्योतिषशास्त्र में रूद्राक्ष के प्रभावों पर विषद चर्चा है. शिव का स्वरूप होने से रूद्राक्ष के माहात्म्य के विषय पर ज्यादा बताने की आवश्यकता रह नहीं जाती. पंचमुखी रुद्राक्ष जो पृथ्वी पर सहजता से सुलभ है आज उसके महत्व की चर्चा करेंगे. क्यों पंचमुखी रुद्राक्ष इतना अधिक उपलब्ध है. इसे धारण करने के क्या लाभ हैं.

ज्यादातर लोग एकमुखी रुद्राक्ष की तलाश में ही होते हैं. एकमुखी दुर्लभ हैं. आसानी से नहीं मिलते. भोलेनाथ रूद्राक्ष में अपना अंश देते हैं.  भक्तों पर सदा कृपालु महादेव भला भक्तों को अपने प्रिय रूद्राक्ष से दूर रखना चाहेंगे? इसका अर्थ है कि महादेव स्वयं नहीं चाहते कि ज्यादा से ज्यादा लोग एकमुखी रूद्राक्ष धारण करें. इसलिए एकमुखी के फेर में ठग लिए जाने से अच्छा है शिवजी द्वारा भेजे गए उस रूद्राक्ष को धारण करना जो सर्वसुलभ और सस्ता भी है. अच्छी बात यह कि इसमें सारे गुण मौजूद हैं.

पंचमुखी रुद्राक्ष ही ऐसा रुद्राक्ष है जो सर्वसुलभ है. प्रसन्नता की बात यह है कि पंचमुखी रुद्राक्ष सर्वगुणों संपन्न माना जाता है. यही रुद्राक्ष सभी रुद्राक्षों में सर्वाधिक शुभ तथा पुण्यदायी, संतान एवं धन सुखदायी है. संभवतः इसीलिए भगवान रूद्र ने इसे सर्वसुलभ बनाया है. आप लोगों को जो रुद्राक्ष माला धारण किए दखते होंगे वे ज्यादातर पंचमुखी रुद्राक्ष के होते हैं.

तो आपने समझ लिया कि पंचमुखी रूद्राक्ष की माला धारण करना भी उत्तम है. एकमुखी मिल जाए तो अच्छी बात, न भी मिले तो 100 से 200 रुपए में मिलने वाले पंचमुखी को प्रसन्नता से धारण करें. यही पर्याप्त है. धर्म के नाम पर ठगी न हो इसके लिए ये बातें लिखी हैं क्योंकि आजकल ठगी की प्रवृति ज्यादा हो गई है. अब आपको पंचमुखी की महिमा से परिचित कराते हैं जिसके आधार पर इसे उत्तम बताया गया.

पंचमुखी रुद्राक्ष की इतनी महिमा क्यों:

देवाधिदेव भगवान महादेव के पांच देवस्वरूप कहे गए हैं.

  • सद्योजात
  • ईशान
  • तत्पुरुष
  • अघोर और
  • वामदेव

शिव इन पाचों रूपों को धारणकर पृथ्वीलोक पर विचरण करते हैं.  कहा जाता है कि ये पांचो शिवरूप पंचमुखी रुद्राक्ष में वास करते हैं. भूमि मातास्वरूप हैं. इस भूमि से उपजे जिस वृक्ष से पंचमुखी रुद्राक्ष प्राप्त होता है उसमें माता और पांचों शिवस्वरूप का समावेश हो जाता है. पृथ्वी पर पंचमुखी रुद्राक्ष की सर्वाधिक उपलब्धता का भी कारण संभवतः यही है. माता पृथ्वी अपने बच्चों को रुद्राक्ष के इसी स्वरूप से ज्यादा जोड़ना चाहती हों.

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पंचमुखी रुद्राक्ष धारण के लाभ

हर रु्द्राक्ष का एक विशेष नाम और विशेष प्रभाव है. (पढ़ें रुद्राक्ष पर पोस्ट ऊपर लिंक से) पंचमुखी रुद्राक्ष को कालाग्नि नाम से जाना जाता है. यह पंचमुखी रुद्राक्ष साक्षात रूद्रस्वरूप  है. पंचमुखी रुद्राक्ष में पञ्चदेवों के वास होने से शिव का आत्मस्वरूप भी माना गया है.

पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य के वे पाप भी कट जाते हैं जो उसके लिए सैद्धांतिक रूप से वर्जित बताए गए हैं. अग्मयगमन यानी जहां नहीं जाना चाहिए तथा अभक्ष्यभक्षण यानी जिसे कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए, इन पापों को काटता है पंचमुखी रुद्राक्ष. भूलवश परस्त्रीगमन हो जाए, दूषित भोजन ग्रहण करने का अनजाने में पाप हो जाए तो शिवजी से इसके लिए क्षमायाचना करनी चाहिए. ऐसे लोगों को पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए. पंचमुखी रुद्राक्ष के धारण से शारीरिक, मानसिक तथा संपदा शक्ति बढ़ती है. व्यक्ति तन-मन-धन से समृद्ध होता है.

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ज्योतिष में पंचमुखी रुद्राक्ष का महत्वः

पंचमुखी रुद्राक्ष के अधिपति ग्रह देवगुरू बृहस्पति माने गए हैं. जिनका बृहस्पति ग्रह प्रतिकूल है उन्हें पंचमुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए. कई विद्वान इसे पुखराज रत्न से भी ज्यादा प्रभावशाली मानते हैं. पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करने से निर्धनता मिटती है. बृहस्पति दाम्पत्य सुख में वृद्धि कराने वाले, विवाह और करियर के कारण ग्रह माने गए हैं. अतः पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करने से बृहस्पति ग्रह से मिलने वाले सारे लाभ सहज प्राप्त होते हैं.

जंघा व कान के रोग, मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा जैसे रोगों के निवारण में पंचमुखी रुद्राक्ष सहायक है. इससे आत्मविश्वास, मनोबल तथा ईश्वर के प्रति भक्तिभाव बढ़ता है. मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन वाले जातक को अवश्य ही पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए.

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पंचमुखी रुद्राक्ष धारण की विधि एवं मंत्रः

किसी भी रुद्राक्ष को धारण करने से पहले उसे सिद्ध करना चाहिए. (इसके बारे में जानकारी के लिए देखें रुद्राक्ष की पोस्ट. लिंक नीचे हैं)

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स्नान के बाद चाहिए स्वच्छ वस्त्र धारण करके शिवमंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग या प्रतिमा के सामने बैठें. विधिपूर्वक विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करादिन्यास, हृदयादिन्यास तथा ध्यान करके शिवजी की पूजा करें. शिवजी का जलाभिषेक करें यानी जल चढ़ावें. उसके बाद रुद्राक्ष सिद्ध करने के लिए निर्धारित मन्त्र का जप करना चाहिए-

पंचमुखी रुद्राक्ष को सिद्ध करने के भिन्न-भिन्न मंत्र पुराणों में कहे गए हैं. आप श्रद्धानुसार किसी भी मंत्र से इसे सिद्ध कर सकते हैं.

ॐ हूं नमः अथवा ॐ ह्रीं नमः

मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें. इसे धारण करने के लिए सबसे उत्तम दिन सोमवार है.

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2 COMMENTS

  1. Thanks a lot for your so encouraging and knowledgeful updates, can u please tell in details about various types of Nyasa.
    Waiting for ur reply and update.

    • Nyas is ritual performed before the poojan. Angnyas, karnyas and hridya nayas are the most practised one. In layman words you can say we need to purify ourself before inviting our Isht Dev.

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