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पांडवों को यह बात पसंद नहीं आई. भीम ने पूछ लिया- आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? वह दान के नए किस्से सुनाकर युधिष्ठिर की श्रेष्ठता साबित करने लगे. श्रीकृष्ण सुनते रहे फिर बोले- यह निर्णय न मैं करूं और न आप सब. यह निर्णय समय पर छोड़ देते हैं.

प्रभु ने लीला रची. बरसात के दिन थे. एक याचक युधिष्ठिर के पास आया और बोला- मैं बिना हवन किए अन्न ग्रहण नहीं करता. कई दिनों से मेरे पास हवन के लिए चंदन की लकड़ी नहीं है. आप मुझे लकड़ी दें, अन्यथा हवन पूरा नहीं होने से मैं भूखा-प्यासा मर जाऊंगा.

युधिष्ठिर ने तुरंत सेवक को बुलवाया और चंदन की लकड़ी देने का आदेश दिया. संयोग से महल में सूखी लकड़ी नहीं थी. महाराज ने भीम व अर्जुन को बुलाया और ब्राह्मण के प्राणों की रक्षा के लिए चंदन की लकड़ी का प्रबंध करने का आदेश दिया.

काफी कोशिश के बाद भी वे दोनों चंदन की सूखी लकड़ी की व्यवस्था नहीं कर पाए. ब्राह्मण हताश हो रहे थे. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- मैं एक स्थान ऐसा जानता हूं जहां आपके लिए चंदन की सूखी लकड़ी मिल सकती है. आप मेरे साथ वहां चलिए.

भगवान ने अर्जुन व भीम को भी साथ चलने का इशारा किया. वेश बदलकर वे भी ब्राह्मण के संग हो लिए. श्रीकृष्ण ब्राह्मण को लेकर कर्ण के महल पहुंचे. सभी ब्राह्मण वेश में थे इसलिए कर्ण ने उन्हें पहचाना नहीं.

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