पूजा के नियम क्यों बनाए गए हैं? क्या उसके पीछे कोई कारण है या बस किसी के दिमाग में आया और बना दिया? पूजा के नियम पर आज व्यवहारिक चर्चा करेंगे. समझेंगे कि पूजा के नियम बने तो क्यों बने? पूजा के नियम हमें क्या सिखाते हैं? यह पोस्ट आपके काम की है.

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हर पूजा से पहले पूछा जाता है कि पूजा के नियम पता हैं न? ईश्वर की पूजा को नियमों से बांधने का क्या कारण रहा होगा? पूजा के नियम बनाकर हम पर कुछ थोपा गया है या हमें कुछ सिखाने की कोशिश हुई है? सनातन धर्म और उसकी परंपराएं व्यवहारिक और विज्ञान आधारित हैं. इसे गूढ़ दृष्टि से समझना चाहिए. यही प्रयास प्रभु शरणम् में होता रहता है. ध्यान से समझिए क्योंकि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको भी चिंतन करना होगा. बहुत से लोग पूजा-पाठ के विधानों पर प्रश्न खड़े करते हैं. उनका विरोध क्या उचित है क्या अनुचित इसे छोड़कर आत्ममंथन करके कारण तलाशने में ध्यान देना होगा. आपको सोचने की दिशा इस पोस्ट से मिल जाएगी ऐसी आशा है.

आज पूजा के नियम विषय को हम समझेंगे. बहुत विस्तृत है पर संक्षेप में इसे समझाने का प्रयास कर रहा हूं.

पूजा के नियम की जरूरत ही क्यों है?

पूजा के नियम बनाए गए हैं. वैसे तो भगवान को भाव से भजना चाहिए लेकिन अनुशासन जरूरी है. भक्ति दो प्रकार की है. निष्काम भक्ति और सकाम भक्ति. निष्काम भक्ति यानी ईश्वर से स्नेह है, प्रेम है, उनके सामने विनीत हैं. किसी खास मनोकामना की पूर्ति के लिए पूजा नहीं कर रहे, आत्मिक शांति के लिए कर रहे हैं. प्रभु जो कर रहे हैं वह मेरे लिए अच्छा है. जो करेंगे वही सबसे अच्छा होगा. मुझे वही प्रदान करेंगे जो मेरे लिए जरूरी है. यह भाव रखना निष्काम भक्ति का भाव है. कामना प्रधान नहीं है.

जब किसी विशेष कामना के साथ पूजन कर रहे हैं तो उसे सरल बोलचाल में सकाम भक्ति कह सकते हैं. संपत्ति के लिए, विवाह के लिए, विद्या के लिए, नौकरी के लिए, संतान के लिए, आदि, आदि. यदि पूजा करने के पीछे कोई विशेष मंशा या मनोकामना है तो वह सकाम हुआ. सकाम भक्ति में पूजा के नियम का ध्यान रखना जरूरी है.

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मनोकामना के साथ की गई पूजा में पूजा के नियम मानना क्यों जरूरी है?

इसे एक साधारण उदाहरण से समझिए. मान लीजिए आप अपने किसी परिचित या मित्र के यहां जाते हैं. उससे कोई काम नहीं है आपको बस प्रेमवश गए हैं. आप अपने उस मित्र के यहां जब भी जाते हैं तो प्रेमवश जाते हैं. कुछ काम कराने या कुछ पाने की लालसा में नहीं. यदि आप उसके बच्चों के लिए साधारण सी टॉफी भी लेकर चले जाते हैं तो भी आपके मित्र का परिवार इसे ही पर्याप्त मानेगा. क्यों? क्योंकि आप प्रेमभाव से लाए हैं.

अब आप उसी मित्र के यहां किसी विशेष प्रयोजन से जाते हैं. उससे कोई काम कराना है, कोई लाभ लेना है तो उस मित्र का परिवार की अभिलाषा आपसे कुछ और होगी. उनके मन में आ सकता है कि हमारे कारण इन्हें इतना फायदा होगा पर ये बच्चों के लिए 100 रूपए का खिलौना तक नहीं लेकर आते. आप किसी आशा से वहां गए हैं, इसलिए प्रत्याशा यानी बदले में उन्हें भी आशा होना स्वभाविक है.

वैसे तो ईश्वर की दृष्टि में इन छोटी बातों का कोई अस्तित्व ही नहीं. परंतु पृथ्वीलोक पर हम हैं. भगवान के पूजा के नियम पृथ्वीवासियों ने बनाए हैं. उनकी दृष्टि से यह अनुचित नहीं है. इस प्रकार यह परंपरा बन गई. देखा जाए तो यह व्यवहारिक भी है. सनातन को केवल धर्म न समझें. यह व्यवहारिक ज्ञान का उत्कृष्ट संग्रह है जिसका पालन करने में कहीं न कहीं हमारा ही लाभ है. हमे उसमें बांधने के लिए पूजा के नियम बना दिए गए. यदि इस दृष्टि से देखें तो पूजा के नियम यह सोचकर स्वीकार करें कि इसके माध्यम से हमें सामाजिक व्यवहारिकता सिखाई जा रही है.

बहुत से ऐसे विधान बना दिए गए हैं जो तार्किक नहीं है. वे नियम कैसे प्रवेश कर गए कहा नहीं जा सकता. ईश्वर की पूजा और पूजा के नियम हमारे लाभ के लिए हैं. मन की शांति के लिए. पूजा से लिंग, जाति, वर्ण आदि के भेदभाव वास्तव में हैं ही नहीं. श्रीराम ने केवट से पूजा कराई, निषादराज की सेवा ली, शबरी माता का जूठन खाया, वानर-भालुओं के साथ लंबा समय बिताया और राक्षसों का उद्धार किया. यदि कोई भेद भगवान मानते तो क्या यह सहज स्वीकारते. भगवान इन भेदों से हमें दूर रहने को कहते हैं. जीव से प्रेम करिए, उसका सम्मान कीजिए. यही पूजा है.

पूजा के बहुत से नियम हो सकता है, आपको उचित न लगते हों, संभव है वे उचित न भी हों. पर यह भी तो संभव है कि पूजा के उस नियम के पीछे कोई कारण रहा हो जिसे हम समझ नहीं पा रहे. हमारी दृष्टि उसे देख नहीं पा रही.

बहुत सी परंपराएं देश, काल और परिस्थितियों से प्रभावित होती हैं. समय के साथ उनमें संशोधन भी होते हैं. सनातन धर्म में तो इतना लचीलापन, इतनी स्वीकार्यता है कि वह परंपराओं को लेकर बहुत उग्र या जिद्दी नहीं है. परिवर्तन को सनातन सहज स्वीकार कर लेता है. इसी कारण सनातन को मिटाने की कोई भी प्रयास सफल न हुआ. अनादिकाल से सनातन अपने स्थान पर है.

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आशा है पूजा के नियम क्यों बनाए गए हैं इस पर आपकी दृष्टि कुछ स्पष्ट हुई होगी. अब पूजा के नियम की चर्चा करेंगे. पूजा के नियम बने हैं, उसके पीछे का पूरा तर्क मुझे भी नहीं पता. अथाह सागर है इस पर तो शोध चलता रहेगा. मैं आपके समक्ष पूजा के वे नियम रखता हूं जो प्रचलित हैं.

मंदिर में आरती के दौरान पूजा के नियम जिन्हें न भूलेंः

सबसे पहली बात मंदिर में प्रवेश और पूजा के नियम की जिसका उल्लंघन होते रोज देखता हूं. जब भगवान की आरती होती है उस दौरान भक्तों को वहां अपने द्वारा की जा रही पूजा बंद कर देनी चाहिए. आरती के दौरान आरती में सम्मिलित होना चाहिए. ऐसा देखता हूं कि बहुत से लोग आरती के दौरान कहीं हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो कहीं मंत्र जप रहे हैं. यह नहीं करना चाहिए. आरती के विषय में कहा जाता है कि पूजा के विधान में जो कमी रह गई है उसे आरती से पूरा किया जाता है. जो समस्त कमियों को दूर करने वाला विधान है उससे आप वंचित न हों. उसमें सम्मिलित होकर लाभ लें.

शिवजी के अभिषेक से जुडे नियम, अज्ञानता में लोग पालन नहीं करतेः

बात. आजकल सावन में लोग विभिन्ऩ मनोकामनाओं के लिए विभिन्न पदार्थों से शिवजी का अभिषेक करते हैं. करना भी चाहिए. दूध, शहद, गन्ने का रस, दही आदि चीजें अर्पित की जाती हैं. शिवजी के अभिषेक पूजा के नियम कहते हैं कि इन पदार्थों को अर्पित करने के बाद आखिर में जल से शिवजी का अभिषेक जरूर करना चाहिए. देखिए कितनी व्यवहारिक बात है.

आपने दूध. रस, दही कुछ भी चढ़ाया उस पर मक्खियां भिनभिनाएंगी. दुर्गंध भी होगा. यदि सब अर्पित करने के बाद जल से शिवलिंग को धो देंगे तो वह शुद्ध पवित्र हो जाएगा. इसलिए शिवलिंग कोभेंट अर्पित करने के बाद जल से अभिषेक जरूर करना चाहिए.

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घंटा बजाने के नियम जिसका पालन करेंः

बहुत से लोग घंटे को इतना बजाते हैं जैसे उखाड़ ही ले जाएंगे. वे सोचते हैं कि भगवान एकदम से नींद में हैं. उनका आगमन हुआ है तो भगवान को तुरंत जागकर तैनात हो जाना चाहिए. यह मूर्खता है. घंटा लगाने के पीछे वैज्ञानिक कारण के अलावा एक अन्य कारण भी कहा गया है. देवगण आपसी चर्चा में हो सकते हैं. जैसे हम किसी के घर में प्रवेश करने से पहले उसकी अऩुमति लेते हैं. वैसे ही देवालय देवताओं का घर है. वहां प्रवेश से पहले उन्हें सूचित कर देते हैं.

अब यदि आपके घर में आने वाला कोई अतिथि एक साथ दस बार कॉल बेल बजा दे तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होती है. घंटा बजाने से जुड़े पूजा के नियम को आप इस दृष्टि से परखें. घंटा आराम से और एक बार ही बजाएं. वहां पूजा कर रहे किसी अन्यभक्त का ध्यान अगर आपके घंटानाद से बंटता है तो आपको पाप लगता है. भक्तिभाव में डूबे किसी व्यक्ति को भक्ति से विमुख करने का प्रयास के लिए पूजा के नियम अक्ष्मय देव अपराध की श्रेणी में रखते हैं. आरती के समय ही घंटा नाद भरपूर किया जा सकता है. इसीलिए तो आरती के समय कोई निजी पूजा-जप आदि नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे ध्यान केंद्रित नहीं होता.

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पुष्प, पत्तियां आदि तोड़ने का हिसाबः

पुष्प, पत्तियां आदि इसलिए भगवान को अर्पित की जाती हैं क्योंकि पत्तियों को थोड़ी संख्या में तोड़ने से नई शाखाएं वृक्ष में फूटती हैं. आवश्यकता से अधिक पुष्प वृक्ष के पोषण को बाधित करते हैं पर इन्हें ज्यादा नहीं तोड़ना चाहिए. इसलिए जितनी जरूरत हो उतना ही पुष्प या पत्तियां तोड़ें. इस क्रम में डाली का नुकसान नहीं होना चाहिए. यह नियम पर्यावरण और वृक्ष विज्ञान पर आधारित है. जरूरत से ज्यादा फूल या पत्तियां न चढ़ाएं. शहरी क्षेत्रों में जहां वन नहीं है वहां तो विशेष रूप से इसका ध्यान रखना चाहिए. लाख बेलपत्र, करोड़ पुष्प अर्पित करने की परंपरा तब की है जब वन बहुत सघन थे. इसी बहाने उनकी छंटाई हो जाती थी. सघन वन में स्थापित शिवलिंग की ऐसे ही पूजा आज भी करनी चाहिए. आशा है आप इससे सहमत होंगे.

–दैनिक पूजा के नियम जो प्रचलन में हैं. अपनी सुविधा से आप इनका पालन कर सकते हैं. ये नियम विभिन्न शास्त्रों में आते हैं. इनके पीछे कारण कुछ न कुछ तो रहा होगा. यह शोध का विषय है. पर जैसा कि मैंने ऊपर कहा भगवान तो भाव के भूखे हैं. इसीलिए तो पूजा के नियम में ही इस बात का भी जिक्र है कि सबसे अच्छा यज्ञ जपयज्ञ है. जप के लिए आपको न तो कोई अधिक पुष्प तोड़ना है, न लकड़ी न अन्य चीजें. सोचिए जब शास्त्र सबसे उत्तम जपयज्ञ को कहते हैं जो हमें उचित दिख रहा है तो उन्हीं शास्त्रों में जो नियम कहे गए हैं उनके पीछे भी कोई न कोई कारण रहा होगा. यह अलग बात है कि हम इसे अभी समझ नहीं पा रहे.

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आप कहेंगे कि ऐप्प पर ही क्यों जोर देता हूं. कारण है- मैं टेक्निकल फील्ड का व्यक्ति नहीं हूं. वेबसाइट पर पोस्ट करने में तमाम झंझट हैं. ऐप्प पर मुझे सरल लगता है. लिखने के बाद पोस्ट करने में मुश्किल से पांच मिनट. यहां पोस्ट करने में एक घंटे लग जाते हैं. अब यह समय लिखने-पढ़ने में प्रयोग हो तो बेहतर है. तकनीकि झंझट में क्यों समय गंवाऊं.

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ऐप्प का लिंक ऊपर आपने देख लिया होगा. इसे पोस्ट के अंत में भी दे दूंगा. आप वहां से भी डाउनलोड कर सकते हैं.

 

आइए जानें पूजा के नियम जो विभिन्न स्थानों पर कहे गए हैः      

–सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु पंचदेव कहे जाते हैं. दैनिक पूजा में इनका पूजन करना चाहिए. इनके मंत्र आदि जप लें या इऩका ध्यान कर लें.

–शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाए जाते. तुलसी जलंधर की पत्नी थीं जिनका शिव ने वध किया. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार तुलसी पहले गणेशजी से विवाह करना चाहती थी. गणेशजी के मना करने पर तुलसी ने गणेशजी को दो विवाह का शाप दिया था. इसलिए गणेशजी को भी तुलसी नहीं चढ़ाई जाती. भैरव शिवांश है. उनके साथ शिवजी के नियम अनिवार्यतः चलते हैं.

— मां दुर्गा को दूर्वा या दूब घास अर्पित नहीं करना चाहिए. दूब विशेष रूप से गणेशजी को अर्पित करना चाहिए. पुराणों में आता है गणेशजी को एक बार पेट की परेशानी हुई थी तो दूर्वा की गांठ से उनका उपचार हो गया था. इसलिए पूजा के नियम में गणेशजी को दूर्वा चढ़ाना शुभफलदायी होता है.

–सूर्य देव को शंख से जल का अर्घ्य नहीं देना चाहिए. सूर्य को जल तांबे के पात्र से देना सबसे अच्छा माना गया है. तांबा और सोना सूर्य की धातु है.

–तुलसी पत्ते को बिना स्नान कभी किए नहीं तोड़ना चाहिए. बिना स्नान किए तोड़े गए तुलसी के पत्तों को भगवान स्वीकार नहीं करते. रविवार, एकादशी, द्वादशी को तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए. तुलसी का पत्ता पंद्रह दिनों तक बासी नहीं माना जाता. इसलिए अगर आपने पंद्रह दिन पहले तुलसी तोड़ कर रख लिया है तो उसे जल से धोकर भगवान को अर्पित कर सकते हैं.

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–शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार किया जाता है. मंदिरों में इसका पालन होता है. घरों में इतना पालन हो पाना तो मुश्किल ही होता है लेकिन यदि किया जाए तो बहुत उत्तम है. जिन घरों में नियमित रूप से पांच बार पूजन होता है वहां देवी-देवताओं का आनंदपूर्ण वास माना जाता है. घर के मंदिर में भी सुबह और शाम कम से कम दो बार आरती या पूजन कर लेना चाहिए. मंदिर में पर्दे लगाकर रखना चाहिए. रात्रि को भगवान को विश्रामभाव में रखना चाहिए. देवताओं के निमित्त जल रखकर पर्दा लगा देना चाहिए.

–प्लास्टिक की बोतल या अपवित्र धातु से बने बर्तन में गंगाजल न रखें. लोहे और एल्युमिनियम को गंगाजल रखने के लिए अपवित्र धातु समझें. तांबे के बर्तन में रखना शुभ है. प्लास्टिक में वैसे भी पानी खराब होता है. गंगाजल को चरणामृत के रूप में हम पीते हैं. तो इसका असर हो सकता है. हालांकि आज के दौर में सारी चीजें  प्लास्टिक में ही पैक होकर आ रही हैं. शीशे की बोतल में जल रखें तो अच्छा.

–स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए. स्त्रियों को रोकने के पीछे कारण सही-सही क्या है कहना मुश्किल है पर शायद इससे जोर लगता है और वह उनके गर्भाशय स्थान को प्रभावित कर सकता है. पर मैं इसको लेकर श्योर नहीं हूं.

–मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए. यह तो सामान्य शिष्टाचार है. किसी को पीठ दिखाना उसकी तौहीन है.

–केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए. शिवपुराण में इसका विस्तार से वर्णन है जो मैं कई बार प्रभु शरणम् ऐप्प पर बता चुका हूं. आप प्रभु शरणम् से जुड़े रहिए.

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–पूजा में दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. आप पूजा-पाठ में इतना खर्च कर देते हैं तो जिस भगवान की सेवा में जो व्यक्ति लगा हो उसकी जरूरतें आपके माध्यम से भगवान पूरी कराते हैं. इसलिए दक्षिणा चढ़ानी चाहिए. इससे देने का भाव आता है. भगवान के मंदिर में सिर्फ लेने का भाव नहीं आना चाहिए. कभी भी मूर्तियों पर भूले से भी पैसे न उछालें. बहुत बड़ा दोष है. इस पर तो विस्तार से प्रभु शरणम् ऐप्प में चर्चा हुई थी. पुनः वहां पर देंगे.

–दूर्वा या दूब घास को रविवार को तोडऩे से मना किया गया है. कुछ कारण होगा.

–मां लक्ष्मी को कमल का फूल विशेष प्रिय है. माता कमलवासिनी है. नारायण के नाभिकमल से ब्रह्मा निकले. नारायणी को कमल प्रिय होगा ही. पति-पत्नी एक दूसरे की पसंद को अपनी पसंद बनाएं तो गृहस्थी की गाड़ी सरपट दौडती है. आजकल बड़े स्कूलों में बच्चों का एडमिशन लेने से पहले माता-पिता का अलग से इंटरव्यू किया जाता है. दोनों से बच्चों के बारे में अलग-अलग बिठाकर पूछा जाता है. बच्चों की पसंद नापसंद पर सवाल किए जाते हैं. यह सब परखने के लिए किया जाता है कि क्या आप उस पर ध्यान देते हैं. एक दूसरे की पसंद को अपनी पसंद बना लेने से बहुत से कन्फ्यूजन अपने आप दूर हो जाते हैं.

— शिवजी को प्रिय बिल्वपत्र को छह माह तक बासी नहीं माना जाता. छह माह पुराना बेलपत्र भी यदि है और वह खराब नहीं हुआ है तो जल छिड़ककर आप उसे शिवलिंग पर चढ़ा सकते हैं.

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–भगवान को पुष्प आदि किसी बर्तन में रखकर फिर निकालते हुए अर्पित करना चाहिए. वैसेही जैसे किसी को कुछ परोसा जाता है. यह भी सामान्य शिष्टाचार सिखाने वाली परंपरा है.

–तांबे के बर्तन में पिसा हुआ या घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए. इसके पीछे वैज्ञानिक आधार हैं.

–कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए. ऐसा करने से व्यक्ति रोगी होता है. साधारण सी बात है दीप से दीप जलाने के लिए दीपक को टेढ़ा करना होगा. इस क्रम में तेल गिरेगा और आपका शरीर जल सकता है.

–बुधवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए. कुछ कारण होगा, क्या कारण कह नहीं सकते.

–पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा या उत्तर-पूर्व आग्नेय में करना चाहिए.

–पूजा के आसन को पैर से नहीं खिसकाएं.

–घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं. एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए.

–पूजा करने के बाद परिक्रमा की जाती है. यदि परिक्रमा की जगह नहीं है तो उसी स्थान पर खड़े होकर तीन बार परिक्रमा अवश्य कर लेनी चाहिए.

–भगवान के चरणों की चार बार आरती नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती की जाती है. इस प्रकार भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए.

–पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी श्रेष्ठ मानी गई हैं. इससे बड़ी न रखें. खड़ी प्रतिमाएं खासकर गणेश जी, सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ घर में न रखें. हनुमानजी की श्रीरामपरिवार, श्रीकृष्ण की खड़ी मूर्तियों की पूजा होती है.

–घर के मंदिर में गणेशजी या देवी की तीन प्रतिमाएं न रखे. दो शिवलिंग, दो शालिग्राम दो सूर्य प्रतिमाएं दो गोमती चक्र दो की संख्या में नहीं रखना चाहिए.

–उपहार में मिली मूर्ति, खण्डित मूर्ति, जलीफटी तस्वीरें और टूटा कांच तुरंत हटा दें. शिवलिंग को खंडित नहीं माना जाता. जहां भी शून्य है वहां शिव हैं इसलिए शिवलिंग जैसे भी है पूज्य है. खंडित मूर्तियों को पूजास्थल से हटाकर किसी पवित्र जल में प्रवाहित कर देना चाहिए. हालांकि तांबे के अतिरिक्त किसी और चीज को जल में प्रवाहित नहीं करना चाहिए. अभी जल-प्रदूषण की बड़ी समस्या है.

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–मंदिर के कुछ न रखें. भगवान के वस्त्र,  पुस्तकें आदि मंदिर के ऊपर न रखें. अपने पूर्वजों की प्रतिमा देवस्थान में नहीं रखनी चाहिए. उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें. देवताओं के साथ न रखें.

–भगवान विष्णु की चार परिक्रमा, गणेशजी की तीन परिक्रमा, सूर्य की सात परिक्रमा, मां दुर्गा की एक एवं शिवजी की आधी परिक्रमा का विधान है. पीपल वृक्ष पर सभी देवों का वास है इसलिए उसकी भी सात परिक्रमा होती है.

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-राजन प्रकाश

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