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एक महात्माजी वृक्ष लगाया करते थे. एक दिन उन्होंने वृक्ष लगाने के लिए एक गडढ़ा खोदा तो उन्हें बहुमूल्य रत्नों से भरी एक थैली मिली. महात्माजी को धन की जरूरत नहीं थी.

उन्होंने सोचा कि इस धन को सबसे गरीब व्यक्ति को दान करेंगे ताकि उसकी दरिद्रता समाप्त हो और उसका जीवन सुखमय हो जाए. वह सबसे गरीब की खोज में निकले. पूरा दिन बीत गया लेकिन दान के सुपात्र का निर्णय नहीं कर पाए.

वह नगरसेठ के घर के पास सुस्ताने को रूके. सेठ का कारोबार विदेशों तक फैला था. हजारों लोग उसके लिए काम करते थे. प्रसिद्धि पाने के लिए सेठ सैकड़ों लोगों को रोज भोजन भी कराता था. इससे राजा भी उसको बहुत मान देता था सो कारोबार फैल रहा था.

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