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पिछली कथा से आगे…
भ्रमरों को हनुमानजी ने समाप्त कर दिया फिर भी हनुमानजी और मकरध्वज के हाथों अहिरावण और महिरावण का अंत नहीं हो पा रहा था. यह देखकर हनुमानजी कुछ चिंतित हुए.

फिर उन्हें कामाक्षी देवी का वचन याद आया. देवी ने बताया था कि अहिरावण की सिद्धि है कि जब पांचो दीपकों एक साथ बुझेंगे तभी वे नए-नए रूप धारण करने में असमर्थ होंगे और उनका वध हो सकेगा.

हनुमानजी ने तत्काल पंचमुखी रूप धारण कर लिया. उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख.

उसके बाद हनुमानजी ने अपने पांचों मुख द्वारा एक साथ पांचों दीपक बुझा दिए. अब अब उनके बार बार पैदा होने और लंबे समय तक जिंदा रहने की सारी आशंकायें समाप्त हो गयीं थी. हनुमानजी और मकरध्वज के हाथों शीघ्र ही दोनों राक्षस मारे गये.

इसके बाद उन्होंने श्रीराम और लक्ष्मणजी की मूर्च्छा दूर करने के उपाय किए. दोनो भाई होश में आ गए. चित्रसेना भी वहां आ गई थी. हनुमानजी ने कहा- प्रभो! अब आप अहिरावण और महिरावण के छल और बंधन से मुक्त हुए.

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