धीरे धीरे मैं अपने भाई का गम भूलता गया और अपने मन में तुम्हें अपने भाई एवं मित्र के रूप में बसाता गया।  तभी से मैं तुम्हें अपना मित्र बना चुका था।

कल रात को जब फूलन सिंह, इसी स्थान से अपने साथियों के साथ तुम्हारें बैल चुराने आया । तब तक तुम अपने घर से आये नहीं थे।

मैंने सोचा—- जब किशोरी को अपना भाई और मित्र माना है तो उसका फ़र्ज़ भी अदा करना चाहिए। फिर सोचा अगर इसे यहां काट लिया, तो इसकी कोई सहायता भी नहीं बन पाएगी  और यह बिना कुछ बताये मर भी सकता है।

समाज के लोग इसके साथ चोर जैसा व्यवहार भी कर सकते हैं इसको पीटकर मार भी डाल सकते हैं जो उचित नहीं है। दूसरी तरफ मैंने अपने मित्र को धोखा दिया तो वह गरीबी में और भी विषम परिस्थितियों में फंस जाएगा। ऐसा सब कुछ सोचने के बाद मैं इसके पीछे पीछे चल दिया।

इसने बैलों को कमरे में लाकर बाँध दिया। जैसी ही फूलन सिंह देहरी लांघी,  मैंने पैर में काट लिया। मैंने इसको यहां इसलिए काटा ताकि,

इसकी करतूतों का खुलासा इसके गाँव में ही होना चाहिए, अब बताओं मित्र, तुम्हें मेरी मित्रता कबूल है,

किशोरी की साँसे बार बार अपनी गति बदल रहीं थीं, उसकी आँखों से आंसू झर झर बहने लगे।

कैसी मित्रता निभाई है इस सर्प ने , उसने सोचा। इतना तो इंसान एक दूसरे के लिए नहीं करता। वो लोभ,लालच और दम्भ का शिकार हो जाता है और मित्रता में विश्वासघात कर देता है। लेकिन इस सर्प ने बिना किसी छल के मुझसे मित्रता निभाई है,

अब किशोरी ने कुछ संभलकर कहा, महाराज जी, मैं तो आपकी मित्रता के काबिल नहीं था। क्योंकि आप हमारे यहां आये, रहे और आपने किसी भी तरह एहसास तक नहीं होने दिया। मैं आपकी किसी भी रूप में सेवा नहीं कर सका। मुझे इस बात का अफ़सोस है। आपका ये एहसान तो जिंदगी भर नहीं चुका पाऊंगा।

महाराज जी, लेकिन आपने मित्र कहा है तो, मैं आपसे मित्रता के सारे फ़र्ज़ निभाऊंगा। जीवन पर्यंत आपकी सेवा करता रहूँगा।

आपसे मित्र होने के नाते यही वादा चाहता हूँ। अब जब तक आप रहें, मेरी उसी कुटिया पर निवास रखें। मुझे रोजाना दर्शन दें।

सर्प महाराज जी ने कहा, किशोरी मेरे मित्र..मैं वादा करता हूँ ,आजीवन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।

और दोनों उठकर(फूलन सिंह के रूप में सर्प तथा किशोरी) प्रेम से एक दूसरे के गले मिले। इस दृश्य को देखकर वहां खड़े सभी स्त्री पुरूषों की आँखों में प्रेम के आंसू भर आये। सभी आश्चर्यचकित थे कि ये कैसा देव विधान है। जो एक सर्प और मनुष्य में परम मित्रता देखने को मिली है।

तभी भीड़ में से आवाज आई।  महाराज जी, फूलन सिंह को तो माफ़ कर दो,

सर्प महाराज ने कहा.. इसका फैसला मेरा मित्र करेगा, क्योंकि उसी के बैलों की चोरी हुई है।

अब किशोरी ने ऊँची आवाज में कहा, यदि फूलन सिंह अपनी पिछली जिंदगी छोड़ दे तो हम माफ़ करवा सकते हैं।

इस बात पर सभी साथियों और परिवार के सदस्यों ने हां में गरदनें हिला दी।

किशोरी ने कहा, भैया जाओ माफ़ किया,

सर्प महाराज जी को सिर्फ गंगा जी नहलवा देना और कुछ साधुओं को भोजन करवा देना।

सर्प महाराज ने कहा, जैसा मेरे मित्र ने कहा है।वैसा ही होगा। उन्होंने अब किशोरी से कहा,मित्र, तुम हमें रोज़ाना अपनी कुटिया पर भजन सुनाओगे।

किशोरी बोला, महाराज, इसकी कहने की आवश्यकता ही नहीं थी, क्योंकि अब तो ये मेरा फ़र्ज़ बन गया है।

इसके बाद सर्प महाराज जी ने कड़ककर कहा, फूलन सिंह ने जहाँ से इन बैलों को चुराया था। वहीँ भरे समाज के सामने उसी स्थान पर बाँध कर आये। और माफ़ी मांगे, भगत से विशेष रूप से क्षमा याचना करे।

इसके बाद सर्प महाराज जी ने सबको प्रणाम करके अपने मित्र से चलने की मंशा जाहिर कर दी और इसी के साथ वो उसके शरीर से हट गए।

तमाशा अब ख़त्म हो चुका था लेकिन तमाशे के मदारी को ठीक होने में थोड़ा समय लगता। इसलिए एक दिन बाद जब फूलन सिंह ठीक हुआ, तो बीती हर बात उसके घरवालों और पड़ोसियों ने उसको बता दी।

उसे अपनी गलती पर पछतावा था। उसने सभी गाँव वासियों से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी। और कहा अगर सर्प और इंसान दोनों सच्चे मित्र हो सकते हैं। तो मैं भी अपनी पिछली जिंदगी छोड़ता हूँ।

उसने उन बैलों को किशोरी के गाँव में उसके घर बाँध दिया। भरे समाज के सामने सबसे माफ़ी मांगी। कुछ दिन बाद सर्प के नाम से गंगा स्नान भी करवा दिया।

उसके बाद फूलन सिंह समाज में सभ्य एवं समाज सेवी, इंसान बनकर रहने लगा…………..समाप्त……..

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