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क्या एकादशी व्रत का कोई वैज्ञानिक रहस्य भी है? क्या यह विज्ञान आधारित है?

जी. यह एकादशी व्रत पूरी तरह विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित है. गरिष्ठ भोजन के त्याग और एकादशी के दिन आवश्यक रूप से व्रत के विधान के पीछे विज्ञान है.

अमावस्या और पूर्णिमा को सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति ऐसी होती है कि उस दिन पृथ्वी पर वायु का दबाव सर्वाधिक होता है यह बात सभी जानते हैं. इसी कारण इन दिनों समुद्र में बड़े ज्वार-भाटे होते हैं. अगले दिन समुद्र बहुत शांत रहता है. यह बात समुद्र के किनारे रहने वालों ने अनुभव किया होगा. दबाव के इसी विज्ञान के पीछे एकादशी व्रत का कारण भी छिपा है.

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शरीर विज्ञान कहता है कि जो भी हम आहार लेते हैं उसे पूरी तरह शरीर में अवशोषित होकर उसके सार तत्व को मस्तिष्क तक पहुंचने का पूरा चक्र तीन से चार दिनों तक का होता है.

एक दिन से अधिक तो वह आंतों में रहता है. उसके बाद उसके अवशोषण की प्रक्रिया, अपशिष्ट के शरीर से बाहर निकलने आदि का कार्य चलता रहता है.

इस प्रकार हम जो भोजन एकादशी को लेते हैं वह पूरी तरह से मस्तिष्क को प्राप्त होते-होते पूर्णिमा या अमावस्या आ ही जाती है. पृथ्वी पर इस दिन चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का दबाव सबसे अधिक रहता है. जिसके कारण मस्तिष्क के अप्रत्याशित व्यवहार की आशंका सर्वाधिक होती है.

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एकादशी व्रत के दौरान गरिष्ठ और तामसी वस्तुओं का त्याग कर दिए जाने के कारण मस्तिष्क को पूर्णिमा या अमावस्या को सात्विक ऊर्जा ही मिलती है. इस कारण उसके विचलित होने की आशंका सबसे कम हो जाती है.

दिमाग जिसे शरीर के सारे निर्णय लेने हैं उसे खुराक ही ऐसी मिलती है कि वह असंतुलित नहीं होता. यह तो हुआ सबसे सामान्य सा कारण. एक और कारण है जिसे आपको जानना चाहिए-

जैसे पूर्णिमा और अमावस्या को चंद्रमा का आकर्षण सर्वाधित होता है क्योंकि उस दिन वह पृथ्वी के ज्यादा निकट होता है. उसी प्रकार सप्तमी के दिन वह सबसे दूर होता है और उसका आकर्षण सबसे कम होता है.

चंद्रमा की उपस्थिति हमारे लिए उपयोगी और आवश्यक है. शास्त्रों में कहा गया है कि न्यूनता और अधिकता दोनों ही उचित नहीं है. एकादशी एक ऐसा दिन है जिस दिन चंद्रमा का दबाव संतुलित रहता है.

कारण वह सप्तमी और अमावस्या या पूर्णिमा के बीच की तिथि है. अर्थात मानव शरीर पर चंद्रमा का प्रभाव एकादशी को सबसे संतुलित होता है. ऋषियों ने इसी शोध का लाभ ले लिया और हमें निरोग रखने का नुस्खा दे दिया.

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निरोग होने का नुस्खा मिल गया वह कैसे?

आइए इसे भी समझते हैं-

समस्त बीमारियां वात-वित-कफ के त्रिदोषों के कारण होती हैं. पेट जहां अन्न सड़ता है उसकी सफाई बहुत आवश्यक होती है क्योंकि सबसे ज्यादा बीमारियां इसी कारण होती हैं.

आप अपने घर की सफाई-सजावट उस दिन सबसे ज्यादा बढ़िया से करते हैं जिस दिन आपको ऑफिस जाने का कोई दबाव न हो. ऑफिस जाना यानी अतिरिक्त कार्य का दबाव न हो.

एकादशी के दिन शरीर पर बाहरी शक्ति (चंद्रमा) का अतिरिक्त दबाव नहीं होता. वह सबसे ज्यादा संतुलित और संयमित रहता है. यानी जैसे आप छुट्टी के दिन आनंद के मूड में होते हैं तो जो भी करते हैं मन से करते हैं.

एकादशी के दिन को भी वैसा ही समझ लें. इसलिए शरीर के पाचनतंत्र की सफाई के लिए एकादशी से बेहतर दिन क्या हो सकता है?

कितनी चतुराई कितनी बुद्धिमानी दिखाई हमारे ऋषियों ने क्योंकि वे जितना खगोलीय ज्ञान रखते थे उतना आज के विज्ञान के पास अभी तक नहीं है.

यदि एकादशी के दिन शरीर की सफाई करने के लिए उसकी खुराक की आपूर्ति कम भी हो तो भी शरीर आसानी से झेल जाएगा क्योंकि वह आनंद की अवस्था में है. कोई अतिरिक्त दबाव नहीं झेल रहा है.

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इससे तो शरीर का नुकसान होने के बजाय लाभ ही हो जाएगा और पाचन तंत्र की सफाई भी हो जाएगी.

अगले दिन यानी द्वादशी को यथाशीघ्र भोजन ग्रहण करने को कहा जाता है. इसलिए द्वादशी के दिन पारण का मुहूर्त बहुत जल्दी सुबह होता है. उस मुहूर्त में पारण नहीं करने पर एकादशी व्रत को व्यर्थ बताया जाता है.

यह बंधन शरीर विज्ञान को ध्यान में रखकर बनाया गया है ताकि उसकी ऊर्जा आपूर्ति बाधित न हो. क्या आपको अब एकादशी व्रत की वैज्ञानिकता का आभास हुआ.

मैं समझ रहा हूं, आपके ज्यादातर प्रश्नों के उत्तर तो मिल चुके हैं पर कुछ प्रश्न और उठे हैं. चलिए उनका भी निदान किए देते हैं. आपको और सरल तरीके से समझाता हूं.

आगे पढ़ें अमेरिकी वैज्ञानिकों का शोध और उस शोध का एकादशी व्रत से संबंध

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5 COMMENTS

  1. As i too take fasting at monday worshipping lord shiva (bholenath), I personally find this site very useful which provides a lot of information concerned to our religion it’s importance and value which were and are unknown to me..
    So i would like to thank from my bottom heart.

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