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हिंदू धर्म में इतने व्रतों का प्रावधान क्यों हैं?
व्रत यानी भूखे होने से पहले इस बात को समझते हैं कि खाने के बाद क्या फर्क पड़ता है. जब हम भोजन करते हैं तो हमें नींद सी आने लगती है- ऐसा क्यों होता है? कभी सोचा है.

हम जब खाना खाते हैं तो उसे पचाने से पहले उसे अच्छी तरह से पीसने और मिक्स करने के लिए हार्मोन्स के रूप में निकलने वाले एसिड की आवश्यकता होती है. उसके लिए शरीर का रक्त प्रवाह पेट की ओर हो जाता है.

मस्तिष्क को सप्लाई होने वाले रक्त में कुछ कमी आती है इसलिए वह सुस्त पड़ने लगता है और हमें नींद सी आती है. जितना गरिष्ठ भोजन करते हैं उसे तोड़ने के लिए उतने ही अधिक एसिड की आवश्यकता होती है.

इसलिए ज्यादा खाने से ज्यादा नींद आती है. सुबह नाश्ते के बाद नींद नहीं आती क्योंकि पहले से ही रात का एसिड जमा रहता है जो काम में आ जाता है.

एकादशी व्रत के समय इसलिए माला जप, गीता पाठ आदि का विधान है. इससे मन को एकाग्रचित करने में सहायता मिलती है. मस्तिष्क को रक्त का संचार कम होता है तो वह थोड़ा अवचेतन अवस्था में रहता है. उस दौरान ध्यान भटकता कम है.

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उस समय का विद्वान लोग चिंतन में प्रयोग कर लेते हैं क्योंकि सुस्त मस्तिष्क पूरी तरह सक्रिय नहीं रहता.

मस्तिष्क को आप कंप्यूटर या मोबाइल का प्रोसेसर समझिए. उसमें जितने ज्यादा एप्पस खुले रहेंगे उतनी ही अधिक बैटरी की खपत होती रहेगी, आपका नेट यूज होता रहेगा, कैशे मेमरी भरती रहेगी.

बैटरी यदि पूरी न हो तो कई एप्पस काम ही नहीं करेंगे. तब आप सिर्फ वे ही एप्प चलाएंगे जिन्हें आप चलाना चाहते हैं. जैसे घर में बिजली चली जाती है और इन्वर्टर पर बिजली चलती है तो अनावश्यक बल्ब आदि बुझा दिए जाते हैं.

उसी प्रकार व्रत की अवस्था में आपका आपके दिमाग रूपी मोबाइल पर कंट्रोल बढ़ जाता है जिसका प्रयोग सकारात्मक चिंतन के लिए कर सकते हैं.

साधकों के लिए अपने मन को नियंत्रित रखकर ज्ञान चिंतन में प्रयोग की आवश्यकता थी. इसलिए उन्होंने व्रतों और व्रतों के दौरान लिए जाने वाले आहारों पर शोध करके अपना मत रखा.

सारे व्रत गृहस्थों के लिए नहीं है क्योंकि उन्हें बहुत से ऐसे कार्य करने होते हैं जिनमें शारीरिक श्रम चाहिए, मानसिक श्रम नहीं.

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उनके लिए तो खुराक अच्छी चाहिए लेकिन जो दिमागी कार्य ज्यादा करते थे उन्हें मन को शांत रखना होता था. इसलिए ऋषियों ने स्वयं को व्रत आदि में बहुत बांधकर रखा.

हर व्रत का अलग माहात्म्य बताया जाता है. उससे अलग-अलग फल की प्राप्ति की बात की जाती है. वे बातें हवा में नहीं होतीं. बहुत शोध है उनके पीछे भी. इस विषय पर चर्चा भी कभी करूंगा. वैसे आपको बहुत कुछ अंदाजा हो चुका होगा.

जाते-जाते अमेरिका के मनोचिकित्सकों के एक शोध से भी परिचित करा देता हूं जो एकादशी के व्रत की वैज्ञानिकता को प्रमाणित करता है.

अगले पेज पर पढ़ें अमेरिकी मनोचिकित्सकों की शोध और उस शोध से एकादशी व्रत का संबंध

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5 COMMENTS

  1. As i too take fasting at monday worshipping lord shiva (bholenath), I personally find this site very useful which provides a lot of information concerned to our religion it’s importance and value which were and are unknown to me..
    So i would like to thank from my bottom heart.

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