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शनिदेव ने अपने प्रकोप से राहत का मार्ग स्वयं ही बताया था. आखिर क्यों और कब शनिदेव ने सुझाया था वह मार्ग?
बात तब की है जब राजा दशरथ अयोध्या के राजा थे. राज्य में भीषण सूखा पड़ा.
नारदजी से जब प्रजा का कष्ट न देखा गया तो वह दशरथ के पास आए और उन्हें बताया कि रोहिणी पर शनि की दृष्टि के कारण सूखा पड़ा है. प्रजा त्रस्त है इसलिए आप आनंद छोड़कर प्रजा के संकट का समाधान करें.
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दशरथ राज्य भ्रमण को निकले. एक सरोवर के पास पहुंचे. एक पेड़ पर उन्होंने दो तोतों को बात करते सुना.
तोता अपने साथी से कह रहा था- हम सात पुश्तों से यहां रह रहे हैं लेकिन अब अयोध्या छोड़ने में भला है. भीषण सूखा है लेकिन राजा दशरथ अपनी रानियों के साथ ऐशो-आराम में मगन है.
पहले नारद और फिर शुक से ऐसी बात सुनकर दशरथ चिंतित हुए. मेरी प्रजा के साथ इंद्र ऐसा बर्ताव कर रहे हैं जबकि मैं उन्हें मित्र समझता रहा और हमेशा उनके लिए युद्धभूमि में खड़ा रहा.
यह सोचकर राजा दशरथ का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया और वह इंद्र को सबक सिखाने का विचार करने लगे क्योंकि मेघों पर उनका ही आधिपत्य है.
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दशरथ सीधे इंद्र के दरबार में पहुंचे और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा. देवों ने किसी प्रकार दशरथ को शांत कराया.
दशरथ ने कहा- सारे मेघ इंद्र के अधीन हैं लेकिन वे अयोध्या पर नहीं बरस रहे. सूखे से प्रजा त्रस्त है.
इंद्र बोले- आप हमारे मित्र हैं. मैं आपका अहित क्यों चाहूंगा. यह सब तो शनिदेव के प्रभाव में हो रहा है. आप उनसे रोहिणी पर से अपनी दृष्टि हटा लेने को कहें. उनकी दृष्टि हटते ही बारिश होने लगेगी.
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