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शिवजी ने वरदान दिया- तुम्हारा प्रेम अद्वितीय है. यह अभी पूर्ण नहीं हुआ है. तुम दोनों का अगला जन्म राजकुल में होगा. तुम्हारा पति निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र के रूप में जन्म लेगा. वह नल के नाम से जगतविख्यात होगा. तुम विदर्भ के राजा भीमराज की पुत्री दमयन्ती नाम से जन्म लोगी. तुम्हारे भावी जन्म में मेरा हंस रूप प्रकट होगा. वह तुम दोनों पति−पत्नी का मेल कराएगा. तुम दोनों सभी राजसी ऐश्वर्य भोगने के बाद बड़े−बड़े योगियों के लिए दुर्लभ मेरे पवित्र शिवलोक में स्थान पाओगे.

ऐसा कहकर भगवान शिव वहीं लिंगरूप से स्थित हो गए. भील ने प्राण देकर भी अपने धर्म का निर्वाह किया. वह अचल रहा था. अतः उसी के नाम पर उस लिंग का नाम अचलेश हुआ.

महादेव के वरदानस्वरूप भील अगले महाराज नल हुआ और भीलनी विदर्भराज की पुत्री दमयन्ती. यतिनाथ शिव उस समय हंस के रूप में प्रकट हुए. उन्होंने दमयन्ती के साथ नल का विवाह कराया. पूर्वजन्म में सत्कार के कारण अर्जित पुण्य के प्रभाव से भगवान शिव ने हंस का रूप धारण कर दोनों का संदेश एक दूसरे के पास पहुंचाकर उनके मन को सुख प्रदान किया.

राजन प्रकाश

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