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इंद्र ने कहा कि उसके योग्य एक स्त्री पृथ्वी पर पैदा हो चुकी है. इंद्र ने बताया एक बार मैं किसी काम से ब्रह्मा के पास गया. विधूम नामक वसु भी मेरे पीछे-पीछे लग गया.

जब हम वहां पहुँचे तो अलंवसा नाम की एक अप्सरा ब्रह्मा से मिलने आई हुई थी. वसु ने अलंवसा को और अलंवसा ने वसु को देखा. अलंवसा और वसु दोनों ही एक-दूसरे पर मुग्ध हो गये.

ब्रम्हा को यह अच्छा नहीं लगा. मुझे संकेत किया तो मैने दोनों को श्राप दे दिया कि जाओ तुम दोनों धरती पर मनुष्य योनि में पैदा हो. अब वसु के रुप में तो तुम हो अलंवसा राजा कृतवर्मा की बेटी मृगावती बन के पैदा हुई है.

मृगावती तुम्हारी ही पत्नी बनेगी. सहस्रानीक स्वर्ग से घर वापस चल दिया. उसके दिमाग में मृगावती ही घूम रही थी. रास्ते में तिलोत्तमा नाम की अप्सरा ने उसे पुकारा मगर वह तो मृगावती के ध्यान में मगन था.

वह तिलोत्तमा की बात न सुन सका न जबाव दिया. तिलोत्तमा ने तुरंत श्राप दे दिया, जिसके ध्यान में तूने मेरी बात नहीं सुनी तुझे उसका चौदह साल वियोग झेलना होगा.

राजा यह श्राप भी नहीं सुन पाया. भले उसके सारथी ने सुन लिया. सहस्त्रनीक ने राजा कृतवर्मा के पास मृगावती से विवाह का प्रस्ताव रखा फिर मृगावती का विवाह सहस्रानीक के साथ हो गया.
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