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जब उदयन थोड़ा बड़ा हुआ तो रानी ने अपने हाथ का एक कंगन उदयन को पहना दिया. उस पर राजा सहस्रनीक लिखा हुआ था. एक दिन बालक उदयन ने जंगल में मदारी को सांप पकड़ते हुये देखा. उसे यह बात अच्छी न लगी.

उसने मदारी से कहा सांप को पकड़ना पाप है, इसे छोड़ दो. मदारी बोला, पहले ही मेरा एक सांप मर गया है. अब मेरे पास कोई सांप नहीं है. मेरी तो रोजी-रोटी इसी पर है. इसे छोड़ दूंगा तो कैसे तमाशा दिखाउंगा. कैसे कमाउंगा, क्या खाउंगा.

उदयन ने मदारी पर दया करके मां का दिया कंगन हाथ से निकाल कर उसे दे दिया. मदारी सोने का कंगन पाकर बहुत खुश हुआ और तुरंत सरक लिया. मदारी के जाते ही वह सांप पुरुष बन गया. पुरुष के हाथ में वीणा थी.

उस सुंदर पुरुष ने उदयन से कहा- मेरा नाम वसुनेमी है सर्पराज वासुकी मेरा भाई है. तुमने मेरी जान बचाई है इसलिये मैं तुम्हें यह वीणा तांबूल और माला भेंट करता हूँ. यह माला कभी नहीं मुरझायेगी.

वसुनेमी ने उदयन को कभी न मिटने वाले तिलक का उपाय भी बताया. उधर वह मदारी कंगन पाकर उसे बेचने के लिये पास के सबसे बड़े शहर कौशाम्बी को गया.

इतना भारी महंगा कंगन वहीं बिक सकता था. वह कंगन बेचने जिस सुनार पर गया उस सुनार ने कंगन पर राजा सहस्रनीक का नाम देखकर सैनिकों को बुला लिया.

सैनिक मदारी को दरबार में ले गये. मामला बिगड़ता देख डर से मदारी ने सब हाल उनसे कह दिया. राजा संदेह से भर उठा. तभी आकाशवाणी हुई की रानी मृगावती अपने बेटे साथ उदयाचल पर्वत पर जमदग्नि मुनि के आश्रम के पास हैं.

अब तिलोत्तमा के दिये श्राप का समय समाप्त हो गया है इसलिये रानी जाकर ले आना चाहिये. आकाशवाणी का सुनना था कि राजा ने सेना को आदेश दिया कि वह और मदारी दोनों उसके साथ तुरंत उदयाचल को चले.
(क्रमशः जारी…)
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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