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वे राजा पुत्रक को विंध्यवासिनी देवी के दर्शन कराने के बहाने मंदिर ले गए. उनकी मंशा उसे मारकर उसका राज्य हड़पने की थी. मंदिर के भीतर उन्होंने वधिको को पहले ही लगा रखा था. पुत्रक को देवी के दर्शन करने पहले भेज दिया.

बधिकों ने जब घेरकर पुत्रक का वध करने का प्रयास किया तो पुत्रक ने कहा- मैं तो मरने वाला ही हूं इसलिए मुझे सच बताओ, तुम लोग मुझे क्यों मार रहे हो?

बधिकों ने कहा- तुम्हारे पिता और उसके भाइयों ने हमें सोना देकर तुम्हारी हत्या की सुपारी दी है. पुत्रक ने कहा- इतनी सी बात है तो लो, मैं तुम्हें सारे अमूल्य आभूषण दे देता हूँ. उनसे ज्यादा धन से सकता हूं. तुम लोग मुझे छोड़ दो.

मैं किसी से कुछ न कहूँगा और यहाँ से चुपचाप चला जाऊंगा. वधिकों को पहले से कई गुना ज्यादा धन मिल रहा था वह भी खून बहाये बिना. बधिकों ने उसकी बात मान ली और उसे गुप्त रास्ते से निकाला.

फिर पुत्रक और उसके लोभी परिजनों का क्या हुआ. अगली पोस्ट में पढ़िए.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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