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भोलेनाथ के पास ऋषियों और विरक्तों का जमघट लगता जहां वह प्रवचन करते. पार्वतीजी पर्वतराज की पुत्री थीं. हालांकि उन्होंने जैसे घोर तप किया वैसा तप बड़े-बड़े हठयोगी नहीं कर सकते थे.
फिर भी स्त्री तपस्विनी हों तो भी कुछ तो स्त्रियोचित व्यवहार उन्हें भी पसंद आता है. साज-शृंगार घूमना फिरना. पार्वतीजी की जब भी कोई इच्छा होती भोलेनाथ उन्हें कोई ऐसी सुंदर कथा सुना देते जिससे वह उस कथा में खो जातीं.
भोलेनाथ तो एक कुशल गृहस्थ की तरह बुद्धि का प्रयोगकर अपना दांपत्य जीवन भी बढ़िया निबाह रहे थे. एक बार पार्वतीजी ने हठ किया कि नाथ मुझे ऐसी कथाएं सुनाएं जो आपने पहले किसी और को न सुनाई हों.
शिवजी मान गए तो से देवी बोलीं– जो भी कथा सुनाएं वह वह लंबी हो. काफी समय तक चले लेकिन समय का पता भी न चले. शिवजी पार्वतीजो को लेकर एक निर्जन गुफा में पहुंचे.
कोई और कथा न सुन ले इसके लिए उन्होंने द्वार पर नंदी को पहरे पर बिठा दिया और पार्वती को अकेले में लंबी कथा सुनानी शुरू की. पार्वतीजी कथा में लीन हो गईं. उन्हें आनंद आने लगा.
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