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इस बात को काफी समय हो गए. एक बार पार्वतीजी ने जया और विजया से कहा- मैं तुम लोगों को आज ऐसी कथा सुनाती हूँ, जो आज तक मेरे अतिरिक्त किसी ने नहीं सुनी है.
पार्वती ने ज्योंहि कथा सुनानी शुरू की जया ने बीच में टोक कर आगे की कथा सुना दी और कहा- देवी, यह कथा तो मेरी पहले की सुनी हुई है. फिर उसने पार्वतीजी को आगे की पूरी कथा बताने लगी.
पार्वतीजी को बड़ा अपमान महसूस हुआ कि वह अनुचरों के सामने झूठी साबित हुईं. उन्होंने जया से पूछा कि तुमने यह कथा कब और किसके मुख से सुनी है. जया ने बता दिया कि मैंने अपने पति पुष्पदंत से सुनी है.
पार्वतीजी क्रोध में तमतमाकी भगवान शिव के पास पहुंची और पूछा- आपने जो कथा मुझे सुनाई वही कथाएं आपने अपने गणों को भी सुनाई है, जबकि हमारे बीच शर्त थी कि आप किसी और नहीं सुनाएंगे. आपने वचन भंग किया है.
शिवजी बोले मैंने किसी अन्य को नहीं सुनाई है कथा. पार्वतीजी ने सारा हाल कह दिया तो शिवजी ने ध्यान लगाकर पता किया. पुष्पदंत नंदी की नजर बचाकर अदृश्य होकर गुफा में जा छिपा यह बात उन्हें पता चल गई और उन्होंने पार्वतीजी से कही.
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