सभी मृत आत्माओं का श्राद्ध आवश्यक है. श्राद्ध के बाद पितरों के निमित्त तर्पण भी आवश्यक है. इसे नियम से करना चाहिए. मास की अमावस्या तो पितरों के लिए ही होती है. फिर भी आश्विन मास के कृष्णपक्ष में श्राद्ध तर्पण का विशेष महत्व कहा गया है.

श्राद्ध के बिना पितरों की तृप्ति नहीं होती. पितर तृप्त नहीं हैं तो फिर वह कुल कभी उन्नति नहीं कर सकता. शास्त्रों में श्राद्ध को क्यों इतना महत्वपूर्ण बताया गया है इसके पीछे अनेक कथाएं हैं. गरुड़ पुराण और मत्स्य में तो श्राद्ध विषय पर बहुत चर्चा है.  जो श्राद्ध कर्म करते हैं उनकी अनेकों बाधाएं स्वतः खत्म हो जाती हैं. सभी श्राद्ध के बारे में जानना चाहते हैं और जानना भी चाहिए. पितृपक्ष के दौरान प्रभु शरणम् पर विशेष पोस्ट की शृंखला आरंभ की जाएगी.  श्राद्ध का महत्व बताती मत्स्य पुराण की एक कथा लेकर आए हैं.

पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध

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पितृपक्ष में प्रभु शरणम् में आपको क्या-क्या मिलेगाः

  • श्राद्ध से जुड़ी सारी जानकारियां.
  • श्राद्ध कर्म की विधि, श्राद्ध की तिथि
  • श्राद्ध का माहात्म्य बताती पौराणिक कथाएं
  • श्राद्ध का ज्योतिषशास्त्र में महत्व.
  • किनका श्राद्ध किया जाता है किनका नहीं.
  • कौन किसका श्राद्ध किस दिन कर सकते हैं.
  • पितृदोष का निवारण कैसे होता है. कहां-कहां होता है. आदि, आदि.

श्राद्ध का महत्व बताती मत्स्य पुराण की एक कथाः

पांचाल के राजा ने भगवान् विष्णु को घोर तपकर प्रसन्न किया. भगवान से उन्होंने ऐसे पुत्र का वरदान लिया जो धार्मिक, विद्वान और योगी होने के साथ-साथ प्राणियों की बोली का जानकार भी हो. प्रभु ने राजा को ऐसे पुत्र का वरदान तो दिया ही पांचाल नरेश को भी पशु-पक्षियों की बोली समझने का गुण प्रदान किया.

एक बार राजा ब्रह्मदत अपनी पत्नी संनति के साथ उपवन में घूमने गये. राजा ने चींटा-चींटी को एक दूसरे से बात करते देखा तो उत्सुकतावश सुनने लगे. चींटा रूठी हुई चींटी को मना रहा था परंतु चींटी का क्रोध कम न होता था. राजा दोनों के संवाद ध्यान से सुनने लगे. चींटी की शिकायत थी कि उसके पति ने लड्डू का स्वादिष्ट चूरा ले जाकर उसके स्थान पर किसी अन्य चींटी को दिया था.

राजा ब्रह्मदत चींटे-चींटी के प्रेम मनुहार की बात सुनकर हंसने लगे. महारानी को यह विद्या नहीं आती थी इसलिए उन्होंने समझा कि राजा उनपर हंस रहे हैं. उनका मजाक उड़ा रहे हैं. वह हंसी का रहस्य जानने के लिए हठ करने लगी.

राजा ने बताया कि वह पशु पक्षियों की भाषा समझते हैं पर रानी को विश्वास न हुआ. उन्हें लगा कि राजा या तो झूठ बोल रहे हैं या कोई अन्य कारण है. रानी ने स्पष्ट कर दिया कि यदि राजा ने इसका उचित कारण न बताया तो वह हमेशा के लिए उनसे विमुख हो जाएंगी.

रानी के इस व्यवहार से खिन्न होकर राजा मंदिर में चले गए. भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने सात रातों तक आराधना पूजा करते रहे. भगवान ने उन्हें सपने में दर्शन देकर इस समस्या का समाधान भी बता दिया.

भगवान ने कहा- कल सुबह तुम्हारे नगर में एक बूढा ब्राह्मण घूमता हुआ आयेगा. उसकी बात में तुम्हें समाधान मिल जायेगा.

भोर होते ही एक ब्राह्मण सुदरिद्र वहां आया. राजा अपने दो विश्वस्त मंत्रियों के साथ उससे मिलने आया. बूढे ने एक श्लोक पढा.

श्लोक का अर्थ था- जो बहुत पहले कुरुक्षेत्र में श्रेष्ठ ब्राह्मण के रूप में, मंदसौर में शिकारी बनकर, कालंजर पर्वत पर हिरन की योनि में और मानसरोवर में चकवा बनके जन्मे थे, वे ही आज सिद्ध होकर यहां राज कर रहे है.

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श्लोक सुनते ही राजा ब्रह्मदत सिंहासन से गिरकर अचेत हो गए. सैनिकों ने ब्राह्मण को पकड़ लिया. पूछताछ शुरू हो गयी. ब्राहमण ने बताया कि उसने अपने बेटों के कहने पर श्लोक कहा जिससे राजा की यह दशा हुई.

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