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उन्होंने मित्रों को रोका नहीं. ग्वाल-बाल भीतर गए तो अजगर के सांस से उन्हें तेज गर्मी महससू होने लगी. वह सांस लेता तो बच्चे भरभराकर गिरने लगते. अघासुर ने उन्हें अभी तक निगला नहीं. वह तो श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा कर रहा था.

अघासुर बछड़ों और ग्वालबालों के सहित भगवान श्रीकृष्ण को अपने जबड़ों से चबाकर चूर-चूर कर डालना चाहता था परन्तु उसी समय श्रीकृष्ण ने अपने शरीर को बड़ी फुर्ती से विशाल करने लगे.

प्रभु आकार बढ़ाने लगे तो उसकी सांस रूक गई. गला फटने ले प्राण निकल गए. इस प्रकार सारे बाल-ग्वाल और गोधन भी सकुशल ही अजगर के मुंह से बाहर निकल आए. अघासुर का शरीर एक प्रकाश पुंज बना और प्रभु में विलीन हो गया.

कन्हैया ने एक बार फिर सबके प्राण बचा लिए. सब मिलकर कान्हा की जय-जयकार करने लगे. पूर्व जन्म में अघासुर शंख का पुत्र था. उसका नाम था अघ. अघ कामदेव के जैसा सुंदर था. जिसका उसे बड़ा अभिमान हो गया था.

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