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अब बात श्रीराम के सम्मान की हो गई तो वीरमणि को भी अपने भाई वीरसिंह और दोनों पुत्रों के साथ युद्ध में आना पड़ा. रुक्मांगद की चुनौती पर शत्रुघ्न युद्ध के लिए तैयार हुए तो भरत पुत्र पुष्कल उन्हें रोककर स्वयं युद्ध के लिए जाने की जिद की.

हनुमानजी सारी बातें सुन रहे थे. उन्होंने बताया कि स्वयं भोलेनाथ वीरमणि की रक्षा करते हैं इसलिए युद्ध को टालने का प्रयास करें. उन्होंने वीरमणि को समझाकर युद्ध टालने की सलाह दी. उन्होंने श्रीराम को सारी बातें बता देने की भी सलाह दी.

हनुमानजी की बात पर शत्रुघ्न तुनक गए. उन्होंने हनुमानजी को कहा कि श्रीराम को युद्ध भूमि में आने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी . भयानक युद्ध छिड़ा. पुष्कल राजा वीरमणि से भिड़ गया. दोनों में घमासान युद्ध हुआ.

अंत में पुष्कल ने वीरमणि पर आठ नाराच बाणों से प्रहार किया. वीरमणि बेहोश होकर गिर पड़े. उधर वीरमणि के भाई वीरसिंह को हनुमानजी ने बुरी तरह घायल कर दिया. शत्रुघ्न ने वीरमणि के पुत्रों को नागपाश में बांध लिया.

वीरमणि की बेहोशी टूटी तो उन्होंने महादेव को पुकारा. भक्त को मुसीबत में देख महादेव ने सेनापति वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी, भृंगी सहित अपने सभी वीर शिवगणों को युद्ध के लिए भेज दिया. महादेव की सेना देखकर शत्रुघ्न कांपने लगे.

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2 COMMENTS

  1. Jinki katha ki mahima ka koi ant nahi uske baare me mere jaisa tuchh maanav apna kya comment de sakta hai. Msi sirf yshi vinti karta hu ki aisi kathaien jitn jyada ho sake utna apne parijano od apne ane wali pidhi ke logo tak pahunchane ka vikalp dundhna chahiye.
    Jai ho sanatan dharm ki.

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