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मोरवी ने घटोत्कच से शास्त्र विद्या का प्रमाण देकर निरुत्तर करने को कहा. घटोत्कच ने पूछा, “किसी व्यक्ति की पत्नी से एक कन्या ने जन्म लिया. कन्या को जन्म देते ही वह चल बसी. कन्या के पिता ने उसका पालन पोषण कर बड़ा किया. जब वह कन्या बड़ी हुई तो पिता की बुद्धि भ्रष्ट हो गई.
वह अपनी पुत्री से बोला मैंने अज्ञात स्थान से लाकर तुम्हारा पालन-पोषण किया है. अब तुम मुझसे विवाह रचाकर मेरी कामना पूरी करो. उस कन्या को सत्य का पता नहीं था. अनजाने में वह अपने पिता से विवाह कर लेती है. दोनों से उन्हें एक बेटी पैदा हुई. यह बताओ कि वह कन्या उस नीच कामी पुरुष की पुत्री हुई या दौहित्री?”
मोरवी निरुत्तर हो गई. उसने शस्त्र विद्या में घटोत्कच परास्त करने के लिए अपना खेटक उठाया. तभी घटोत्कच ने मोरवी को पृथ्वी पर पटक दिया. मोरवी घटोत्कच के हाथों शास्त्र और शस्त्र दोनों विद्याओं में परास्त हो चुकी थी. उसने अपनी पराजय स्वीकार करते हुए घटोत्कच से विवाह की हामी भर दी.
घटोत्कच ने कहा- सुभद्रे! उच्च कुल के लोग चोरी छुपे विवाह नहीं करते है. तुम आकाश गामिनी हो, अपनी पीठ पर बिठाकर मुझे मेरे परिजनों के निकट ले चलो. हम दोनों का विवाह उनके समक्ष ही होगा.” मोरवी घटोत्कच अपनी पीठ पर बिठाकर उनके परिजनों के समक्ष ले आई. यहाँ श्री कृष्ण एवं पांडवो की उपस्थिति में घटोत्कच का विवाह मोरवी के साथ विधि-विधान से हुआ.
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