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ऐसा करते ही वे बालक तत्काल पुष्ट हो गए. फिर उनकी संतानें हुईं. माया के प्रभाव से सबकी संख्या इसी प्रकार बढ़ने लगी. कुछ ही दिनों में रानी के पुत्र और पौत्रों की संख्या में बहुत बढ गयी.

वे सभी बहुत घमंडी तथा विलासी हो गए. उनमें लालच आ गया और सिंहासन प्राप्त करने के लिए झगड़ने लगे. सत्ता के लिए शीघ्र ही एक हिंसक संघर्ष हुआ और कुछ ही दिनों में आपसी लड़ाई के चलते सभी मारे गए..

अपने वंश का विनाश देख रानी छाती पीटकर विलाप करने लगी. राजा भी शोक से पीड़ित हो रोने लगा. इसी समय एक ब्राह्मण दो शिष्यों के साथ वहाँ आया. ब्राह्मण राजा तथा रानी को उपदेश देने लगा.

ब्राह्मण ने कहा, व्यर्थ ही रोते हो. यह सब विष्णु की माया है. विष्णुमाया ऐसी है कि सैकड़ों चक्रवर्ती और हजारों इंद्र उसी तरह नष्ट कर हो जाते हैं जैसे दीपक को तेज चलती हवा बुझा देती है.

रावण, त्रिकूट पर्वत जैसे दुर्ग, समुद्र जैसी खाई से घिरी स्वर्ण पुरी लंका में रहता था. सभी शास्त्रों और वेदों के ज्ञाता शुक्राचार्य जैसे मंत्री थे. कुबेर का सारा धन उसके पास था. मायावी राक्षसगण जिसके सैनिक थे, वह भी माया के वशीभूत हो नष्ट हो गया.

काल के कोप से युद्ध में, घर में, पर्वत पर, अग्नि में, गुफा में अथवा समुद्र या पाताल में, इन्द्रलोक में, मन्त्र, औषध, शस्त्र आदि से भी कोई कितनी भी अपनी रक्षा करे, नहीं बच सकता, जो होना होता हैं, वह होता ही है.

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