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।।कवि, वेद और शिव-पार्वती वंदना।।
बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥14 घ॥
भावार्थ:-मैं रामायण के रचयिता वाल्मीकि मुनि के चरण कमलों की वंदना करता हूं. जिनकी रामायण खर (राक्षस) सहित होने पर भी खर(कठोर से विपरीत) बड़ी कोमल और सुंदर है तथा जो दूषण (राक्षस) सहित होने पर भी दूषण अर्थात् दोषरहित है.
बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु॥14 ङ॥
भावार्थ:- मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूँ, जो समुद्र सदृश इस अथाह संसार को पार करने के लिए जहाज के समान हैं तथा जो श्री रघुनाथजी का निर्मल यशगान करते स्वप्न में भी कभी थकावट नहीं महसूस करते.
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