स्वधा करती हैं पितरों की भूख शांत

पितृपक्ष के शुरू होने से पहले मैंने आपको पितृ तर्पण का एक मंत्र बताया था जिसमें स्वधा शब्द आया.  स्वधा कौन हैं, स्वधा की उत्पत्ति कैसे हुई, श्राद्ध-तर्पण और पितृकर्म में स्वधा का क्या महत्व इसे जरूर जानना चाहिए.

यज्ञ हवन आदि में आहुति देते समय मंत्र के अंत में स्वाहा का उच्चारण क्यों किया जाता है? इसकी कथा भी बड़ी रोचक है. आप पढ़ सकते हैं. संक्षेप में कहूं तो स्वाहा की उत्पत्ति भगवान ने देवताओं को आहार प्रदान करने के लिए की थी. देवताओं की भूख शांत करने के लिए ब्रह्मा ने स्वाहा की व्यवस्था दी पर पितरों के लिए क्या किया?

पितरों की भूख शांति के लिए ब्रह्माजी ने स्वधा की सृष्टि की थी.  आज उसकी स्वधा की कथा सुनाता हूं.

स्वधा करती हैं पितरो की भूख शांत- श्राद्ध तर्पण माहात्म्य
स्वधा करती हैं पितरों की भूख शांत

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क्यों पितरों का आह्वान स्वधा के साथ होता है-

सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी ने मनुष्यों के कल्याण के लिए सात पितरों की उत्पत्ति की. उनमें से चार मूर्तिमान हो गए. शेष तीन तेज के रूप में स्थापित हो गए. अब सातों पितरों के लिए अब परमपिता को आहार की व्यवस्था की करनी थी. ब्रह्माजी ने व्यवस्था दी कि मनुष्यों द्वारा श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से जो भेंट अर्पण किया जाएगा वही पितरों का आहार होगी.

ब्रह्माजी द्वारा अपने लिए आहार के प्रबंध से पितर संतुष्ट होकर चले गए. उन्होंने श्राद्ध-तर्पण की भेंट की प्रतीक्षा की पर मनुष्यों द्वारा तर्पण के उपरांत भी पितरों तक उनका अंश नहीं पहुंचा. पितर बड़े चितिंत हुए. आखिर ब्रह्माजी ने यह व्यवस्था दी है तो फिर उनका अंश उन्हें प्राप्त क्यों नहीं हो रहा?

आपस में परामर्श के बाद सबने पुनः ब्रह्माजी से ही अपनी परेशानी बताने की निर्णय किया. वे अपनी समस्या लेकर ब्रह्मदेव के पास ब्रह्मलोक पहुंचे.

पितरों ने ब्रह्माजी की स्तुति के बाद अपना निवेदन रखा- हे परमपिता आपने मनुष्यों के कल्याण के लिए हमारी रचना की. उनके द्वारा दिए जाने वाले श्राद्ध और तर्पण का अंश हमारे लिए तय किया फिर भी मनुष्यों द्वारा भेजा हमारा अंश हमें नहीं मिल रहा है. हमारा अंश हम तक क्यों नहीं पहुंचा रहा. हमने विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारा अंश हम तक पहुंचाने का कोई साधन नहीं है.

ब्रह्माजी उनकी परेशानी समझ रहे थे.

पितरों ने कहा- देवों को जब हवन आदि में से उनका अंश नहीं मिल रहा था तो आपने उनके लिए भगवती के अंश स्वाहा की उत्पत्ति करके उन पर कृपा की थी. प्रभु हमारी भूख शांत करने का भी उचित उपाय करें.

पितरों की विनती पर ब्रह्मा ने उन्हें आश्वस्त कराया कि वह इसका निदान करेंगे. यज्ञ में से देवताओं का भाग उन तक पहुंचाने के लेने के लिए अग्नि की भस्म शक्ति स्वाहा की उत्पत्ति देवी भगवती से हुई थी. इसलिए ब्रह्मा ने पुनः देवी का ही ध्यान किया और उनसे पितरों के संकट समाधान की विनती की.

पितृपक्ष में श्राद्धकर्म-तर्पण की सरलतम वैदिक विधि

भगवती ब्रह्मा के शरीर से उनकी मानसी कन्या के रूप में प्रकट हुई. सैकड़ों चंद्रमा की तरह चमकते उनके अंश रूप में विद्या, गुण और बुद्धि विद्यमान थे. तेजस्वी देवी का ब्रह्मा ने स्वधा नामकरण किया और पितरों को सौंप दिया.

ब्रह्मा ने स्वधा को वरदान देते हुए कहा- जो मनुष्य मंत्रों के अंत में स्वधा जोड़कर पितरों के लिए भोजन आदि अर्पण करेगा, वह सहर्ष स्वीकार होगा. पितरों को अपर्ण किए बिना कोई भी दान-यज्ञ आदि पूर्ण नहीं होंगे और पितरों को उनका अंश बिना तुम्हारा आह्वान किए पूरा न होगा.

तभी से पितरों के लिए किए जाने वाले दान में स्वधा का उच्चारण किया जाता है. भगवती के इस रूप का स्मरण दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा नमोस्तुते मंत्र के साथ करते हैं.

देवताओं के भोजन का प्रबंध करने के लिए देवी स्वाहा की उत्पत्ति हुई. कौन हैं देवी स्वाहा. किसकी शक्तियों से उत्पन्न हुईं. किससे विवाह हुआ और किस प्रकार वह देवताओ को भोजन पहुंचाती हैं. बड़ी रोचक कथा है.  इस लिंक से पढें, स्वाहा की कथा.

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