स्त्री चाहे तो रक्तसंबंधों के बीच आकर रक्तपात करा दे. देवताओं को जीतने वाले दो पराक्रमी राक्षस बंधु एक स्त्री का लोभ न जीत सके. एक दूसरे को प्राण से अधिक प्रेम करने वाले सुंद-उपसुंद राक्षस भाइयों के बीच आई तिलोतमा. आगे की कथा जीवन के लिए बड़ा संदेश है.

 

तिलोतमा , तिल-तिल सौंदर्य जमा करके रची गई एक अप्सरा

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तिल-तिल सौंदर्य जमा करके ब्रह्माजी ने रची एक अप्सरा, नाम रखा-तिलोतमा. कहते हैं तिलोतमा को गढ़ने के लिए ब्रह्मा ने अपना समस्त सौंदर्यबोध प्रयोग किया था. तिलोतमा के हर अंग की रचना से पहले ब्रह्मा लंबी कल्पना में जाते थे. एक अप्सरा को रचने के लिए ब्रह्मा को इतना प्रयास क्यों करना पड़ा? तिलोतमा की कथा किसी अप्सरा की कथा नहीं है. यह तो मनुष्य के जीवन की एक व्यवहारिक कथा है. तिलोतमा की एक कथा एक संदेश कथा है.

तिलोतमा की इस कथा में मनुष्य जीवन के लिए बहुत बड़ी सीख है. तभी तो नारदजी ने पांडवों को यह कथा सुनाई थी. एकता के खंडित होने से बड़े लक्ष्य अधूरे रह जाते हैं. जो एकता धनलोभ से भी नहीं खंडित होती वह एकता स्त्रीलोभ में क्षणभर में टूट सकती है. सुंद और उपसुंद नामक दो राक्षस भाइयों में ऐसा प्रेम था जिससे देवता भयभीत थे. अप्सरा तिलोतमा ने वह एकता भंग की और दोनों भाइयों ने एक दूसरे के प्राण ले लिए.

जो कार्य देवों के लिए असाध्य था उसे अप्सरा तिलोतमा ने कैसे पूरा किया. कौन थी तिलोतमा? क्यों रची गई तिलोतमा?

सुंद और उपसुंद दो राक्षस भाइयों ने भगवान ब्रह्मा को घोर तप से प्रसन्न कर लिया. ब्रह्मा ने दोनों दैत्यों से वरदान मांगने को कहा. दोनों ने ब्रम्हा से अमरत्व मांगा.

ब्रह्मदेव ने कहा- जो जन्म लेता है उसे कभी न कभी मरना ही होता है. इसलिए अमरत्व का वर मैं नहीं दे सकता. हां एक उपाय है. तुम दोनों अपनी मृत्यु के लिए शर्त कठिन कर सकते हो. ऐसी शर्त बताओ जिससे तुम्हें लगता हो कि तुम अमर हो सकते हो.

दोनों राक्षस हठी थे. वे अमरत्व के लिए तुले हुए थे. ब्रह्मा उन्हें समझाते रहे कि अमरत्व नहीं मिल सकता. हारकर उन्होंने कहा यदि तुम्हें कुछ वरदान नहीं चाहिए तो मैं विदा लेता हूं.

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सुंद-उपसुंद ने तप व्यर्थ जाता देखा तो तरकीब लगाई.

उन्होंने मांगा- ब्रम्हदेव, हमें वरदान दीजिए की हमारी मृत्यु केवल एक दूसरे के हाथों से हो सके. हम दोनों भाई ही भीषण अस्त्रों का यदि एक दूसरे को मारने के उद्देश्य से प्रयोग करें तभी हमारी मृत्यु हो. किसी और के चलाए अस्त्र-शस्त्र हम भाइयों पर निष्प्रभावी रहें. हम किसी अन्य के आघात से न मरें.

ब्रह्मदेव ने उनकी इच्छानुसार वरदान दे दिया.

दोनों भाइयों में बड़ा प्रेम था. वे एक दूसरे पर प्रहार करना तो दूर एक दूसरे पर क्रोध की बात सोच ही नहीं सकते थे. एक दूसरे की इच्छा को बिना कहे जान जाते थे और उसे हर हाल में पूरा करते थे. इसलिए उन्हें लगा कि ऐसा कोई कारण ही नहीं कि हम दोनों में कभी कोई भेद हो. अतः वे अब स्वयं को अमर मानकर चल रहे थे.

उनपर किसी अस्त्र-शस्त्र का आघात असर कर नहीं सकता था इसलिए उन्होंने स्वर्ग पर आक्रमण किया. वरदानी शक्ति से इंद्र को परास्त किया. सभी देवताओं को वश में किया. वे अलकापुरी के भी अधिपति हो गए. दोनों ने पृथ्वी पर सारे धर्मकार्य बंद करा दिए ताकि देवता भूखे-प्यासे निष्प्राण पड़े रहें.

पूजा-अर्चना करने पर लोगों को दंड दिया जाने लगा. बेहाल होकर इंद्र आदि देवता ब्रह्मदेव के पास गए और निदान करने को कहा.

दोनों को ब्रह्मा ने ही वरदान दिया था लेकिन दोनों के बीच का अटूट प्रेम देखकर ब्रह्मा भी सोच में पड़े. आखिरकार उन्होंने दोनों के बीच विवाद कराने का उपाय निकाला. ब्रह्मा ने कहा दोनों भाइयों की एकता तोड़े बिना काम हो नहीं सकता. दोनों की एकता तोड़ो. इसके लिए किसी स्त्री का प्रयोग करना चाहिए.

अलकापुरी पर तो उनका अधिकार पहले से ही था. सारी अप्सराएं उन दोनों राक्षसों के अधीन ही थीं. फिर क्या किया जाए.

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ब्रह्माजी ने कहा- सौंदर्य की नई परिभाषा का सृजन करो. नारी के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए शृंगार के सामान की रचना करो. अलंकार की नई वस्तुएं बनाओ. एक ऐसी स्त्री की रचना करनी होगी जिसकी सुंदरता सर्वश्रेष्ठ होगी. स्त्रियों के सौंदर्य वृद्धि के लिए शृंगार विधा की रचना की जाए. स्त्री शृंगार करके अपना सौंदर्य बढ़ा सकती है इस कला की रचना करो.

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