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कश्यप अब उस दिव्य गाय को वापस लौटाने से हिचक रहे थे. यज्ञ पूरा होने के काफी समय बाद भी जब कश्यप ने गाय नहीं लौटाई तो वरूणदेव कश्यप के सामने प्रकट हो गए.
वरूण ने कहा- ऋषिवर आपने गाय यज्ञ पूर्ण कराने के लिए ली थी. वह स्वर्ग की दिव्य गाय है. उद्देश्य पूर्ण हो जाने पर उसे स्वर्ग में वापस भेजना होता है. यज्ञ पूर्ण हुआ अब वह गाय वापस कर दें.
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कश्यप बोले- हे वरूणदेव! किसी तपस्वी को दान की गई कोई वस्तु कभी वापस नहीं मांगनी चाहिए. आपके लिए उस गाय का कोई मूल्य नहीं. आप इसे मेरे आश्रम में ही रहने दें. मैं उसका पूरा ध्यान रखूंगा.
वरूणदेव ने अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास किया कि वह उस गाय को इस प्रकार पृथ्वी पर नहीं छोड़ सकते परंतु कश्यप नहीं माने. हारकर वरूणदेव ब्रह्माजी के पास गए और सारी बात बताई.
वरूणदेव ने ब्रह्मा से कहा- हे परमपिता! मैंने तो सिर्फ यज्ञ अवधि के लिए गाय दी थी परंतु कश्यप गाय लौटा ही नहीं रहे. अपनी माता की अनुपस्थिति में दुखी बछड़े प्राण त्यागने वाले हैं. आप राह निकालें.
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