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विदग्ध ने कहा- इनके नाम विस्तार पूर्वक बताएं ऋषिवर. याज्ञवल्क्य ने देवताओं का परिचय देना आरंभ किया. अग्नि, पृथ्वी, वायु, अंतरिक्ष, सूर्य, द्युलोक, चंद्रमा और नक्षत्र- ये आठ वसु हैं.

दस प्राण और ग्यारहवीं आत्मा- ये ही एकादश रूद्र हैं. इनके शरीर त्यागने पर शरीर व्यर्थ हो जाता है और बंधु-बांधव रोने लगते हैं, इसलिए इन्हें रूद्र(रोने वाला) कहा जाता है.

एक वर्ष के 12 महीने ही बारह आदित्य हैं. ये मास मनुष्य की आयु क्षीण या कम करते हैं इसलिए इन्हें आदित्य कहा जाता है.

गर्जना करने वाला बादल ही इंद्र है. इसलिए परवर्ती काल में इंद्र को वर्षा का देवता कहा जाने लगा. यज्ञ को ही प्रजापति समझना चाहिए.

याज्ञवल्क्य ने चर्चा को आगे बढ़ाते कहा- हे मुनिवर विदग्ध! देवताओं की संख्या अन्य प्रकार से भी बताई गई है. अग्नि, वायु, अंतरिक्ष, सूर्य, पृथ्वी और द्युलोक को षटदेव कहा गया है.

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