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काल को देखकर बिना भयभीत हुए श्वेत मुनि ने भगवान शिव को पुकारा. आह्वान किया और गरज कर काल से बोले- मृत्यु मेरा क्या कर सकती है. मैं मृत्यु का भी मृत्यु हूं. काल तू मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता. मैं परम रुद्र भक्त हूं.

यह सुनकर काल बोला- हे श्वेत, चलो अब आपका समय पूरा हो चुका. तुम्हारी इस धमकी से मैं पीछे हटने वाला नहीं. एक बार मैं यदि किसी का प्राण हरने आ गया तो कोई नहीं ब सकता चाहे वह कितनी भी स्तुति कर ले. यमलोक चलो.

यह सुनकर श्वेत मुनि विलाप करने लगे. पर वे अधीर हुए बिना पूरे विश्वास से बोले- मेरे नाथ वृषभध्वज हैं. मुझ जैसे शिवभक्तों का तू कोई अनिष्ट नहीं कर सकता. मेरी आराधना पूर्ण होने तक तुम मुझे छू भी नहीं सकते. तुम लौट जाओ.

काल न माना. एक कुटिल हंसी के साथ उसने श्वेत मुनि को अपने पाश में बांध ही लिया और बोला- देख मैंने तुझे बांध लिया. इस लिंग में स्थित शिवजी ने तेरी रक्षा नहीं की. काल के आगे किसी की गति नहीं चलती.
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