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इसके बाद प्रमद्वरा के से रुरु का विवाह हो गया लेकिन रुरु को सर्पों से बैर हो गया. वह सर्प जाति का विनाश कर देना चाहता था. एक बार उसने एक पानी का सर्प देखा.

रुर ने सर्प को मारने के लिए हाथ में पकड़ी लाठी चलाई. वह उसे मार डालना चाहता था कि तभी वह पानी का सर्प मनुष्य की भाषा में बोला पड़ा- युवक मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो मेरे प्राण लेने पर उतारू हो.
रुरु ने कहा- मेरी प्रियतमा को एक सर्प ने डस लिया था. इस कारण उसके प्राण चले गए. तब से मैंने सभी सर्पों को नष्ट करने की प्रतीज्ञा ली है.

सर्प बोला- तुम्हारा क्रोध उचित, किंतु हम डुंडुभों (विषविहीन पानी के सर्प) को क्यों मारते हो, हममें तो विष ही नहीं होता. सर्प की आकृति मात्र से हमारे प्रति तुम्हारा बैर तो उचित नहीं है ऋषि कुमार.

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