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रत्नावती ने यात्री को बताया कि पास के जंगल से निकले डाकुओं ने उन सबको लूटा और फिर उसको कुंएं में फेंक कर भाग गये. मैं प्रसिद्ध सेठ हेमगुप्त की पुत्री हूं.

यात्री ने रत्नावती को सकुशल उसके घर पहुंचा दिया. स्त्री ने घर जाकर हेमगुप्त से कह दिया कि रास्ते में डाकुओं ने हमारे गहने छीन लिये और दासी को मारकर, मुझे कुएं में ढकेलकर, भाग गये. इस बीच पतिदेव पर क्या गुजरी नहीं पता.

हेमगुप्त ने उसे ढांढस बंधाया कि बाप ने उसे ढांढस बँधाया और कहा कि तू चिन्ता मत कर,निश्चित ही तेरा स्वामी जीवित होगा और वह किसी दिन आ जायेगा.
उधर वह लड़का पत्नी के जेवर लेकर शहर पहुँचा. उसे तो जुए की बुरी लत लगी थी.

वह सारे गहने जुए में हार गया. जब सब पीछे पड़े तो वह यह बहाना बनाकर कि उसके लड़का हुआ है, फिर अपनी ससुराल भाग गया. वहाँ पहुँचते ही सबसे पहले उसकी पत्नी मिली. वह बड़ी खुश हुई. उसे तो काठ मार गया.

उसकी पत्नी ने कहा- आप कोई चिन्ता न करें, मैंने यहाँ आकर वह बात नहीं बताई. दूसरी ही बात कही है. जो कहा था, वह उसने ज्यों का त्यों बता दिया. उधर सेठ अपने जमाई से मिले. जमाई को जीवित और स्वस्थ देख कर वे बड़े प्रसन्न हुए.

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