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ययाति हतप्रभ थे. उन्होंने देवयानी का परिचय पूछा तो देवयानी ने बताया- मैं असुरों के गुरू महर्षि शुक्राचार्य की पुत्री हूं. देवगुरू बृहस्पति के पुत्र कच मेरे पिता के पास मृत संजीवनी विद्या सीखने आए थे और मुझे उनसे प्रेम हो गया.

किंतु कच को मुझसे प्रेम नहीं था. क्रोध में आकर मैंने कच को शाप दिया और कच ने मुझे शाप दे दिया कि कोई ब्राह्मण पुत्र तुमसे विवाह नहीं करेगा. (कच-देवयानी की कथा विस्तार से सुनाएंगे). इसलिए आप क्षत्रिय हैं और आप मेरे साथ विवाह करें.

राजा ययाति देवयानी से विवाह को राजी हो गए. उन्होंने देवयानी को वस्त्र दिए और सेवकों के साथ उनके पिता के पास भेज दिया. देवयानी ने शुक्राचार्य को शर्मिष्ठा की सारी करतूत बताई. क्रोधित शुक्राचार्य असुर लोक छोड़कर जाने लगे.

इधर शर्मिष्ठा से वृषपर्वा को भी सारी बात का पता चला. वृषपर्वा डर गए कि कहीं शुक्राचार्य कोई शाप न दे दें. वह डरकर शुक्राचार्या के पास पहुंचे और उनके पैर पकड़ लिए. शुक्राचार्य ने कहा- वृषपर्वा मैं तुम पर अप्रसन्न नहीं हूं लेकिन तुम्हें मेरी पुत्री को प्रसन्न करना होगा.

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