पिछली तीन कथाओं में आपने पढ़ा कि गरूड़ अपनी मां विनता को अपनी मौसी और नागों की माता कद्रू के दासीत्व से मुक्ति दिलाने के लिए अमृत लाने के लिए उड़े और अपने पिता कश्यप के सुझाव पर हाथी और कछुए का आहार बनाया. अब आगे..

देवताओं ने देखा कि उनके देवलोक में अचानक ही भयंकर उत्पात हो रहे हैं तो देवराज इन्द्र ने देवगुरू बृहस्पति से पूछा- भगवन, एकाएक बहुत से उत्पात क्यों होने लगे हैं?

बृहस्पति बोले- इन्द्र, तुम्हारे अपराध और अहंकार से तथा वालखिल्य ऋषियों के तपोबल से विनता पुत्र गरुड़ यहां अमृत लेने आ रहा है. गरूड़ आकाश में इच्छानुसार रुप धारणकर अपनी शक्ति से असंभव को भी संभव कर सकता है. उसमें अमृत हरकर ले जाने की शक्ति है.

बृहस्पति की बात सुनकर इन्द्र चिंतित हो गए. उन्होंने अमृत के रक्षकों को बुलाकर आदेश दिया कि परम पराक्रमी पक्षीराज गरुड़ अमृत चुराने आ रहा है. सभी देवता और देवलोक के रक्षक अमृत की सुरक्षा करे.

समस्त देवता और स्वयं इन्द्र भी अमृत की रक्षा के लिए डट गए. गरुड़ ने वहां पहुंचते ही अपने पंखों को बहुत तेजी उड़ाना शुरू कर दिया. इसके कारण देवताओं के आगे कुछ समय के लिए अंधेरा सा हो गया. रक्षक गरुड़ को देख भी नहीं सके.

इसका लाभ उठाकर गरुड़ बहुत जोर-जोर से पंख फड़फड़ाने लगे. चोंच और डैनों से देवताओं के शरीर चोटिल हो गए. चारों तक धूल की एक चादर सी बन गई.

इन्द्र ने वायुदेव को आदेश दिया कि वह अपने वेग से धूल का पर्दा फाड़ दें. वायु ने वैसा ही किया. पलभर में चारों ओर उजाला हो गया तो देवता गरूड़ पर प्रहार करने लगे. आकाश में उनसे भी ऊँचे उड़ चले.

चारों तरफ के प्रहारों से गरुड़ आहत होने लगे. उनके पास प्रहार के अतिरिक्त को ई रास्ता न था. उसने पंखों, पंजों, नखों और चोंचों से हमला किया तो देवता बुरी तरह घायल हो गये और घबराकर तितर-बितर हो गये.

गरुड़ अमृत की ओर बढे. अमृत के चारों ओर आग की लपटें देख गरुड़ ने शरीर में आठ हजार एक सौ मुंह बनाये तथा बहुत-सी नदियों का जल पीकर उसे धधकती हुई आग पर उड़ेल दिया. अग्नि शान्त हुई तो गरूड ने शरीर को उज्जवल कर लिया.

गरूड ने शरीर को छोटा कर लिया और आगे बढे. अमृत जहां रखा हुआ था. उस स्थान में प्रवेश किया. अमृत के पास उसकी रक्षा करता लोहे का सूरज जैसा चक्र तेजी से घूम रहा था जिसपर हजारों तीखी धार वाले हथियार लगे थे.

गरुड़ ने अगले ही क्षण अपने शरीर सिकोड़ कर इतना छोटा कर लिया कि चक्र के आड़ों के बीच से होकर भीतर घुस गए. अमृत की रक्षा के लिए वहां लपलपाती जीभें, चमकती आँखें और आग सी चमक वाले दो भयंकर सांप पहरा दे रहे थे.

गरुड़ जी ने सांपों की आंख में धूल झोंका और जब उन्हें कुछ न दिखा तो चोंचों और पंजों से मार-मारकर उन्हें कुचल दिया, चक्र भी तोड़ डाला, अमृत का कलश ले वहाँ से उड़ चले.

देवगुरू की बात सत्य निकली. गरूड़ ने अमृत हर लिया और सीधे सर्पों के पास उड़ चले. गरूड़ देवताओं के प्रहार से बहुत आहत थे. उनका रक्त बह रहा था. अमृत पी लेने से वह स्वस्थ हो सकते थे परंतु गरूड़ ने अमृत स्वयं नहीं किया.

अमृत हरण की बात जानकर भगवान श्रीहरि आए. उन्होंने देखा कि देवताओं से बैर मोलकर गरुड़ ने अमृत चुराया तो है लेकिन इसका अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग नहीं कर रहा है. उसके मन में अमृत पीने का लोभ नहीं है.

गरूड़ का त्याग देखकर श्रीहरि बहुत प्रसन्न हुए और बोले- गरुड़, मनचाहा वर मांग लो. गरुड़ ने कहा- भगवन, आप मुझे अपनी सेवा में रखने की कृपा करें और मैं बिना अमृत पिए ही अजर-अमर हो जाऊं. भगवान ने गरूड़ को वरदान दे दिया.

गरुड़ ने कहा- मैं भी आपको वर देना चाहता हूं. कुछ आदेश करिए. भगवान् ने कहा- तुम मेरे वाहन बन जाओ. गरुड़ ने मान लिया. श्रीहरि ने गरूड़ को अमृत ले जाने की अनुमति दे दी.

इन्द्र गरुड़ को अमृत ले जाते देख क्रोध से भरकर वज्र चलाया. गरुड़ ने वज्र से घायल हो कर भी हंसते हुए कहा- मुझे तनिक भी पीड़ा नहीं हुई है परंतु जिनकी हड्डी से वज्र बना है उनके सम्मान के लिएये मैं अपना एक पंख छोड़ देता हूं.

इन्द्र ने चकित होकर कहा- पराक्रमी पक्षीराज, मैं जानना चाहता हूं कि तुममें कितना बल है? तुम्हारी वीरता देखकर मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूं. गरुड़ ने कहा- देवराज,आपसे मित्रता की इच्छा किसे न होगी, मुझे स्वीकार है.

बल के संबंध में अपने मुंह से बखान करना, उचित नहीं फिर भी आपको मित्र बनाया है तो बता दूं कि पर्वत, वन, समुद्र और जल तथा इसके ऊपर रहने वाले जीवों सहित सारी पृथ्वी को तथा आप लोगों को भी मैं अपने एक पंख पर उठाकर सहजता से उड़ सकता हूं.

ऐसे पराक्रम की बात सुनकर इन्द्र ने कहा- पक्षीराज अब आप मेरी घनिष्ठ मित्रता स्वीकार कीजिए. आपको अमृत की आवश्यकता न हो तो मुझे वापस दे दीजिए क्योंकि आप जिनके लिए अमृत ले जा रहे हैं वे इसका दुरूपयोग करेंगे.

गरुड़ ने कहा- देवराज मैं इसे किसी को पिलाना नहीं चाहता. एक बार मैं शर्त पूरी कर लूं तो आप इसे तत्काल उठा ले जाइए. इन्द्र ने संतुष्ट होकर कहा- गरुड़ मुझसे मुंहमांगा वर ले लो.

गरुड़ को सर्पों की दुष्टता और उनके छल का ध्यान आया तो उन्होंने वर मांगा कि हे देवराज आप ऐसी व्यवस्था दें कि सर्प ही मेरे भोजन की सामग्री बने. इन्द्र ने सहमति दे दी तो गरूड़ सर्पों को कलश सौंपकर शर्त पूरी करने के लिए उड़ गए.

इंद्र को देखकर सर्पों में लालच आया. इंद्र अमृत को ले जाने के लिए तैयार बैठे थे लेकिन सर्पों ने भी अमरता के लिए एक चाल चली. इंद्र ने कैसे की अमृत की रक्षा और अमृत के लालच में नागों को क्या दंड भुगतना पड़ा. यह अगले पोस्ट में.

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

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