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श्रीहरि ने दिति के दोनों पुत्रों हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु का वध कर दिया. दिति इसके लिए इंद्र को दोषी मानती थीं. उन्होंने एक इंद्रहंता पुत्र को जन्म देने की सोची.
दिति ने बिना मंशा जाहिर किए कश्यप मुनि की खूब सेवा की. सेवा और पत्नी के रूप-लावण्य से कश्यप प्रसन्न हो गए. उन्होंने दिति से वरदान मांगने को कहा.
दिति बोलीं-“किसी वरदान के लोभ में सेवा नहीं की. पति को सुख देना पत्नीधर्म है मैं उसका निर्वाह कर रही थीं.” चिकनी-चुपड़ी बातें किसी की भी मति हर लेती हैं.
कश्यप काम के प्रभाव में मत हुए और पत्नी की मंशा नहीं समझ पाए. दिति ने वचन लेकर मांगा- एक ऐसे पुत्र का वरदान दीजिए जो मेरे पुत्रों के नाश के कारक इंद्र का अंत कर सके.
कश्यप आवाक रह गए. वह वचनबद्ध थे. इंद्र भी उने पुत्र थे लेकिन छल से पत्नी ने सौतेले पुत्र के नाश करने वाले एक पुत्र का वरदान ले दिया था. कश्यप ने एक उपाय निकाला.
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