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बलि के इंद्रपद की प्राप्ति के लिए नर्मदा के तट पर चल रहे सौंवे अश्वमेध यज्ञस्थल पर वामन अवतार श्रीहरि पधारे. बलि ने उनके चरण पखारे और उत्तम आसन दिया.

बलि ने उनकी प्रशंसा के बाद कहा- हे ब्राह्मण देवता आपके पधारने से यज्ञस्थल पवित्र हो गया. मैं आपको प्रसन्न करने के लिए क्या करूं.

वामन बोले- आप शुक्राचार्य के शिष्य और प्रहलाद के वंशज हैं. आपसे बड़ा दानी कोई नहीं. आप वचन देकर पीछे भी नहीं हटते. प्रतीज्ञा पूरी करने के कारण आपकी संसार में ख्याति है. महाराज मुझे आपसे निवास के लिए केवल तीन पग भूमि की आवश्यकता है.

बलि ने उनके शरीर का आकार देखने के बाद कहा- आपके आशीर्वाद से मुझमें द्वीप का द्वीप दान करने का सामर्थ्य है. आपने बहुत कम दान मांगा और कुछ चाहे तो वह भी मांग लें.

वामन भगवान ने कहा- मुझे तो सिर्फ तीन पग भूमि की आवश्यकता है. आपका सामर्थ्य बहुत विशाल है परंतु आवश्यकता से अधिक मांगना उचित नहीं.

बलि को प्रभु की बुद्धि पर हंसी आई. उन्होंने कहा- ठीक है आपकी इच्छानुसार दान के लिए मैं तैयार हूं. भगवान ने उनसे दान के लिए संकल्प कराने को कमंडल से जल लेना चाहा.

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