राशिफल-शिवजी नृत्यमुद्रा में

एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी. इसलिए वह स्वयं को श्रेष्ठ मानते थे.

भगवान विष्णु का कहना था कि रचना करने से ज्यादा कठिन है पालन करना. वह सृष्टि के पालनकर्ता हैं इसलिए वह ब्रह्मा से श्रेष्ठ हैं.

सामान्य चर्चा ने विवाद का रूप ले लिया. विवाद बढ़ता जा रहा था. तभी वहां एक विराट ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हुआ. उस ज्योतिर्लिंग को कोई ओर-छोर नहीं दिखता था.

आकाशवाणी हुई कि ब्रह्मा और विष्णु में से जो भी इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा, उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा. दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूढंने निकले.

ब्रह्मदेव ने हंस का रूप लिया और ज्योतिर्लिंग का ऊपरी ओर खोजने निकले. श्रीहरि ने वराह रूप लिया और ज्योतिर्लिंग का निचला छोर खोजने निकले.

श्रीहरि छोर तलाश नहीं सके और वापस लौट आए. ब्रह्माजी भी ऊपरी छोर खोजने में असफल रहे तो वापस चले. तभी उन्हें अपने साथ-साथ नीचे की ओर आता केतकी का एक फूल दिखा.

केतकी को देखकर ब्रह्मा के मन में आया कि यदि मैं यह कह दूं कि मैंने छोर खोज लिया है तो पता किसे चलेगा. इस केतकी पुष्प को इसका साक्षी बना लूंगा.

ब्रह्मा ने केतकी को तरह-तरह का प्रलोभन देकर इस बात की झूठी गवाही देने को राजी कर लिया कि वह ज्योतिर्लिंग के छोर तक पहुंच गये थे.

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ब्रह्मा लौटकर आए उन्होंने ज्योतिर्लिंग का ऊपरी छोर खोजने का दावा कर दिया. केतकी ने गवाह के रूप में ब्रह्माजी का इस झूठ में साथ दे दिया.

ब्रह्माजी के झूठ कहते ही वहां स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए और झूठ बोलने के लिए ब्रह्माजी को खूब खरी-खोटी सुनाई.

जगतपिता झूठ बोल रहे हैं, इससे वह क्रोधित थे. वह ब्रह्माजी को दंड देने के लिए उठे लेकिन श्रीहरि ने उन्हें शांत कराने का प्रयास किया.

महादेव ने ब्रह्मा को शाप दिया कि पुष्कर के अतिरिक्त ब्रह्मा की कहीं और पूजा न होगी. झूठी गवाही देने वाले केतकी के पुष्प को दंडित करते महादेव ने उसका प्रयोग अपनी पूजा में प्रतिबंधित कर दिया.

दोनों देवताओं ने महादेव की स्तुति की, तब उनका क्रोध शांत हुआ. शिवजी ने कहा- मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूं. मैंने ही आप दोनों को उत्पन्न किया है. इसलिए श्रेष्ठता का विवाद निराधार है.

इसलिए महादेव की पूजा में केतकी के पुष्पों का प्रयोग निषिद्ध है. केतकी के फूलों से पूजा करने से महादेव अप्रसन्न हो जाते हैं. (शिव पुराण की कथा)
महादेव की पूजा में केतकी से दूर रहे और कनेर, मदार या आक और धतूरा अवश्य चढ़ाएं. आक, धतूरे और भांग जैसी विषैली वस्तुओं से महादेव क्यों प्रसन्न होते हैं, यह प्रसंग अगले पोस्ट में.

महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं
लेखन व संपादनः प्रभु शरणम्

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