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संयमन के आग लगाने की देर थी. देखते ही देखते सूखी लकड़ियां धधककर जलने लगीं. जाल के विभिन्न छेदों से अग्नि की ज्वाला लहराने लगी.

शिकारी ने आग की ओर इशारा करते हुये कहा- विप्रवर आप इन छेदों में से निकलती आग की कोई एक ज्वाला या अग्निपुंज उठा लें क्योंकि अब मैं आग बुझाउंगा.

शिकारी ने आग पर जल फेंका तो पल भर में ही धधकती आग शांत हो गयी. शिकारी बोला- ऋषिवर जो आग आपने चुनी थी वह मुझे दे दें. उसी के सहारे मैं अपना जीवनयापन करुंगा.

संयमन ने आग पर निगाह डाली पर वहां अब आग कहां! आग की सभी ज्वालायें कब की शांत हो चुकी थीं. संयमन आंख मूंद कर शांत बैठ गये.

शिकारी ने कहा- यही हाल संसार का है. सबके मूल में भगवान की ही जोत जल रही है. यदि व्यक्ति अपने स्वाभाविक धर्म का अनुसरण करते हुए हृदय को परमात्मा से जोड़कर कोई भी शुभ-अशुभ कार्य करता है फिर उस कार्य को प्रभु को समर्पित कर देता है तो उसे न तो कोई दुःख होता है न ही वह कर्म संबंधी पाप पुण्य के चक्कर में पड़ता है.

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