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ईश्वर सबको शक्ति क्यों नहीं देते. कुछ लोगों को शक्ति देऩे के बाद उनसे वह शक्ति वापस भी ले लेते हैं, कारण ईश्वर सदा यह चाहते हैं कि शक्ति योग्य व्यक्ति के पास ही हो.

यदि शक्ति किसी कुपात्र को प्राप्त हो जाती है तो वह उससे सबका नाश करता है, अपना भी और दूसरों का भी. वह शक्ति चाहे तंत्रशक्ति हो या धनशक्ति. एक तांत्रिक जिसे अपने गुरू से असाधारण शक्तियां मिल सकती थीं उसकी छोटी सोच ने उसका अंत कर दिया.

एक साधक ने गुरू को प्रसन्न किया और कठिन तंत्र साधना की. गुरु की कृपा से उसने वह विद्या सीख ली कि जिससे आकाश में जब नक्षत्रों की एक खास स्थिति बनती थी तब वह आकाश से रत्नों का वर्षा करा सकता था.

साल में एक बार ऐसा अवसर आता था. उसने विद्या के प्रयोग से आकाश से रत्नों की खूब बारिश कराई और इस तरह आसानी से विपुल धन उसे प्राप्त हो गया.

अब धन मिल गया तो साधना-पूजा तो कब की पीछे छूट गई. जीवन में सारे ठाट-बाट आ गए. परिवार मजे से रहने लगा. बस रत्नवर्षा वाली साधना न भूल जाए इतना ध्यान रखता था.

एक दिन वह साधक जंगल के मार्ग से किसी दूसरे प्रदेश को जा रहा था. उसके शरीर पर अब अमीर व्यापारियों जैसे वस्त्र-आभूषण थे.

साधक का कोई निशान तो उसमें दिखता ही न था. रास्ते में चोरों के समुदाय ने उसे पकड़ लिया और कहा- तुम्हारे वस्त्राभूषण अमीरों के जैसे मालूम पड़ते हैं.

जो कुछ पास है उसे तो निकालकर यहां रखो ही साथ ही अपनी दौलत का अता-पता बताओ ताकि उसे भी हम लूट कर ला सकें. जब तक तुम्हारी सारी दौलत नहीं मिलती तब तक तुम्हें पेड़ से बांध कर रखेंगे. यदि धन हाथ न लगा तो तुम्हें मार देंगे.

साधक बुरी तरह चंगुल में फंस गया. जो पास में था वह उतारकर रख ही दिया पर चोरों को घर भेजकर परिवार की सारी सम्पदा लुटवा लेने की बात गले न उतरी. इसलिए उसे एक पेड़ से बांध दिया गया.

लुटेरों ने उसे सोचने-विचारने को एक सप्ताह का समय दिया. यदि एक सप्ताह के भीतर उन्हें धन नहीं मिलता तो फिर वे उसका अन्त ही कर देंगे. प्राण जाने की चिन्ता में वह बहुत दुःखी रहने लगा.

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