अक्षय तृतीया पर्व 26 अप्रैल 2020 को मनाया जाएगा. आमतौर पर लोग इस तिथि को सोना खरीदते हैं. इस बार कोरोना के कारण दुकानें नहीं खुल पा रही हैं.  तो क्या अक्षय तृतीया अधूरी रहेगी.  जरूर पढ़ें इस पोस्ट को. आपको बहुत सी जानकारी मिलेगी. संभवतः कई भ्रम दूर होंगे अक्षय तृतीया को लेकर.

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क्या अक्षय तृतीया का मतलब सिर्फ सोना खरीदना होता है! आप तो इसे इसी तरह जानते होंगे. हमेशा से यही सुनते आए हैं. पर मैं कहता हूं अक्षय तृतीया सोना खरीदना का दिन नहीं , सोना बनने का दिन है.

सोना खरीदने का नहीं सोना बनने का दिन!!? क्या बकवास है? तो आइए आज कुछ अलग बातें करते हैं. इस पोस्ट में परंपरागत चीजें हैं जैसे अक्षय तृतीया की जैसे खरीदारी का शुभ मुहूर्त, अक्षय तृतीया की व्रत कथा, कैसे पूजा करनी है, कैसे संकल्प लेना है आदि आदि,यह भी बताऊंगा पर आज एक अलग बात भी करेंगे. कभी-कभी कुछ अलग भी होना चाहिए.

माना जाता है कि विष्णु के तीन अवतार; नर-नारायण अवतार, हयग्रीव अवतार और परशुराम इसी दिन अवतरित हुए. इसी दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है. जिस दिवस को किए गए कार्यों का पुण्यफल अक्षय रहता है, ऐसा पवित्र दिवस सिर्फ सोना खरीदने का दिन कैसे हो सकता है!

बल्कि कहें तो यह दिन स्वर्ण खरीदने का हो ही नहीं सकता. स्वर्ण में तो कलि को स्थान दिया था राजा परीक्षित ने. ईश्वर की दृष्टि में धनवान और निर्धन एकसमान हैं. निर्धन तो सोना खरीद नहीं सकता, तो क्या वह अक्षयपुण्य से वंचित ही रहेगा जीवनकाल में!

भगवान पृथ्वी के किसी भी प्राणी को पुण्य लेने से कभी वंचित करते ही नहीं, तो अक्षय तृतीया को आखिर स्वर्ण से क्यों जोड़कर देखा जाता है. इसके पीछे की बात दूसरी है पर उसे समझने की आवश्यकता है.

स्वर्ण विपत्तिकाल का साथी है. पृथ्वीलोक पर मनुष्य को धन के अभाव से आने वाली विपत्ति से रक्षा करने वाली धातु है स्वर्ण. परंतु धन का अभाव ही एकमात्र विपत्ति नहीं होती.

फिर अक्षय तृतीया पर सोना खरीदकर हम सिर्फ एक विपत्तिकाल की तैयारी क्यों करें. यह तो अक्षय पुण्य का दिवस है, ज्यादा से ज्यादा पुण्य बटोरने का दिन.

किसी भी शास्त्र में प्रामाणिक रूप से नहीं आया है स्वर्ण खरीदने के लिए. वास्तव में अक्षय पुण्य का दिवस कहता है कि स्वयं स्वर्ण बनने का संकल्प करना है जिससे लोक और परलोक दोनों में आने वाली विपत्तियों से रक्षा हो सके.

शास्त्रों में वर्ष में चार अबूझ और स्वयंसिद्ध मुहूर्त बताए गए हैं. स्वयंसिद्ध मतलब इस दिन कोई भी काम स्थाई और बड़ा शुभ माना जाता है.

वे चार तिथियां हैं- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीपावली. अक्षय का अर्थ है जिसका क्षय ना हो.  जो हमेशा स्थाई रहे इसे सौभाग्य सिद्धि दिवस भी कहा जाता है. यानी आज यदि सौभाग्य वृद्धि के कार्य किए जाएं तो वे निश्चय रूप से फलित होते हैं.

सरल शब्दों में समझें तो यह एक ऐसा दिन है जिस दिन जो भी कार्य करेंगे उसका पूरा-पूरा फल मिलता है. इसलिए इस अवसर का लाभ ऐसे कार्य करके लिया जाए जिससे घर में सुख, संपत्ति, आरोग्य और समृद्धि आए.

धर्म और आध्यात्म की आंच में तपकर परोपकार स्वर्ण से भी मूल्यवान कुंदन बनने का दिन है अक्षय तृतीया. थोड़ा कंफ्यूजन हो गया न! भगवान श्रीकृष्ण की शरण में चलते हैं इसे सरलता से समझने के लिए क्योंकि अक्षय तृतीया का भगवान श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है.

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मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान ने वनवास के लिए गए पांडवों को एक अक्षयपात्र दिया था. उस अक्षयपात्र से आवश्यकताभर अन्न और अन्य सामग्रियां निकाली जा सकती थीं लेकिन स्वर्ण नहीं निकलता था उससे.

भगवान द्वारा दी भेंट से सब प्राप्त हो पर स्वर्ण नहीं, आखिर ऐसा क्यों था! भगवान की यह भेंट ही सारी बात कह देती है. गौर से समझिएगा.

युधिष्ठिर वनवास भोग रहे थे लेकिन थे तो राजा ही. राजा के पास कोई को अन्न की आवश्यकता है तो दान के लिए धन की आवश्यकता भी होती है फिर भी श्रीकृष्ण ने नहीं दिया स्वर्ण प्रदान करने वाला पात्र.

श्रीकृष्ण को चिंता हुई कि कहीं ये महावीर पांडव वनवास के समय को भोजन के लिए अन्न उपजाने और गृहस्थी जमाने में ही न करने लगें.

भगवान को आभास था कि दुर्योधन ब्राह्मणों को पांडवों के पास सेवा-सत्कार के लिए भेजता रहेगा ताकि उनके भोजन एवं दान आदि के लिए पांडव अन्न उपजाने में फंसे रहें. इसलिए श्रीकृष्ण ने पांडवों को एक अक्षय पात्र प्रदान किया. अक्षय पात्र में से आवश्यकता के अनुसार अन्न निकाला जा सकता था. स्वर्ण नहीं निकलता था उससे. अक्षय पुण्य के लिए अन्न आवश्यक है, स्वर्ण नहीं.

श्रीकृष्ण से ही जुड़ी एक और घटना है. इसे भी अक्षय तृतीया से जोड़ा जाता है. भगवान श्रीकृष्ण जब द्वारका के राजा बन गए थे. उनके बालसखा सुदामा के परिवार की दशा बहुत दयनीय थी.

सुदामा की पत्नी ने कहा कि भूख से प्राण त्यागने से अच्छा है मित्र की सहायता से जीवन रक्षा करना. उन्होंने सुदामा को श्रीकृष्ण के पास याचना के लिए भेजा. सुदामा मित्र से मिले तो सही लेकिन अपनी दरिद्रता बताकर याचना नहीं कर पाए, पर प्रभु से कोई छुपा क्या पाएगा.

सुदामा अपने घर लौटे तो झोपड़ी के स्थान पर एक सुंदर भवन बना दिखा जिसमें सुख-समृद्धि की कोई कमी न थी.

पुराणों में कहा जाता है कि वह अक्षय तृतीता का दिन था. श्रीकृष्ण की कृपा से दरिद्र सुदामा अक्षय धन संपदा के स्वामी बने थे.

यह कथा एक विशेष उल्लेख करती है. भगवान ने सुदामा की लाज रखी.

सुदामा आए तो थे याचना करने. मित्र के सामने याचना करना तो हीन बन जाने की बात ही है. बराबरी का भाव खत्म हो जाता. भगवान अपने भक्त और मित्र का स्वाभिमान मरते कैसे देख सकते थे. उन्होंने प्रेरणा दी और सुदामा ने भगवान से कुछ मांगा ही नहीं.  बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख

भगवान ने उन्हें विदाई में कुछ नहीं दिया. बस बच्चों के लिए कुछ मिठाइयां और कुछ उपहार देकर विदा कर दिया. चाहे दान स्वरूप हो या उपहारस्वरूप भगवान ने सुदामा को स्वर्ण नहीं दिया.

सुदामा जब अपने घर लौटे तो झोपड़ी गायब, उसी जगह पर सुंदर भवन खड़ा था. पत्नी और पुत्रों ने सुंदर वस्त्र पहन रखे थे. उस घर में अन्न का भंडार था वह परिपूर्ण था. गौशाला में गाएं आ गईं. हर प्रकार से सुखी जीवन का प्रबंध कर दिया प्रभु ने.

भगवान ने दान किया उन वस्तुओं का जिनकी एक निर्धन विप्र को आवश्यकता थी. अपने सामर्थ्य का ढोल नहीं पीटा. सोने का महल भी बनवा सकते थे, सुदामा को अपने राज्य में बड़ा पद दे सकते थे, राजाश्रय मिल सकता था पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया.

भगवान भी मानव रूप में आए थे. इसलिए उन्हें भी अक्षय पुण्य की कामना हुई और अक्षय तृतीया को उन्होंने वह कार्य किया जिससे अक्षय पुण्य प्राप्त हो.

दरअसल अक्षय तृतीया का यह मतलब है. इस तरह हमें स्वर्ण खरीदने के फेर से निकलकर खुद को स्वर्ण जैसा मूल्यवान बनने का कार्य करना है- इस संकल्प का दिवस है अक्षय तृतीया.

तभी तो अक्षय तृतीया के दिन जल के कलश का दान, खड़ाऊं या चप्पलों का दान, छाते का दान, शीतलता प्रदान करने वाली चीजों का दान करने को कहा जाता है क्योंकि गर्मियों के दिन होते हैं. स्वर्ण खरीदने बात इसमें आई कहां से समझ नहीं पाया हूं अब तक.

भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा के चावल खाए थे उनकी दरिद्रता की पीड़ा को स्वयं महसूस किया था इसलिए वह चीज दान की जिसकी सुदामा को आवश्यकता थी. उन्होंने युधिष्ठिर को भी अक्षय पात्र इसीलिए दान किया क्योंकि उसकी ही आवश्यकता थी.

इसलिए अक्षय पुण्य प्राप्त करने के लिए जरूरी नहीं है कि स्वर्ण खरीदें, बल्कि अन्नदान करके, गरीब, जरूरतमंद को भोजन कराकर पुण्य धन का संग्रह करें. इस लोक में खरीदा सोना आपके साथ नहीं जाएगा, साथ जाएगा तो वह पुण्य.

सोने के आभूषण तो इसलिए खरीदने की परंपरा शुरू हुई थी क्योंकि फसल की कटाई हो जाती थी. किसानों के पास कुछ धन जमा होता था.

उस समय धन संचय का सबसे अच्छा साधन था स्वर्ण जमा करना. आज की तरह बैंक या निवेश की अन्य सुविधाएं नहीं थीं. उसी स्वर्ण का प्रयोग विवाह आदि में होता था. इसलिए इस भ्रम में न रहें कि स्वर्ण नहीं खरीदा तो अधूरा रहा. बल्कि इससे बचें.

तो फिर क्या करें अक्षय पुण्य प्राप्ति के लिए, उसे भी समझते हैं. देखें शास्त्र क्या कहते हैं इस विषय पर.

शास्त्रों में अक्षय पुण्य अर्जित करने के जो सरल उपाय बताए गए हैं उसे आजामाकर पुण्य अर्जित करें.

  • इस दिन अतिथियों का भरपूर सम्मान करें. द्वार पर आया कोई याचक खाली हाथ न लौट जाए इसका ध्यान रखें.
  • श्रीकृष्ण की तरह अतिथि और मित्र की सेवा करें. भविष्य पुराण कहता है कि अक्षय तृतीया को किया हुआ उपकार अक्षय रहता है.
  • गरीबों, ब्राह्मणों, साधु संतो को भोजन कराना चाहिए. गर्मी से बचाने वाली वस्तुएं एवं साधन दान करना चाहिए.
  • जो मनुष्य अक्षय तृतीया को चंदन से भगवान श्रीकृष्ण का शृंगार कर पूजन करता है, वह वैकुण्ठ को जाता है.
  • जल से भरे कलश, पंखा, चावल, नमक, घी, चीनी, सब्जी, फल, इमली, खरबूज, तरबूज, चरण पादुकायें (खड़ाऊँ), जूता, छाता और वस्त्र का दान सबसे उत्तम माना जाता है.
  • इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए.
  • चावल और मूंग की दाल खाएं और गरीब भूखों को भी खिलाएं.
  • इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है.
  • नवीन वस्त्र, शस्त्र, आभूषणादि बनवाने के लिए यह दिन उत्तम माना जाता है.
  • श्रीमहाल्मी के मंत्र श्रीं का जप करना चाहिए परंतु इसके लिए किसी वेदपाठी पुरोहित का परामर्श लें. इस दिन जो लोग व्रत रखते हैं या जो श्रीमहालक्ष्मी का विशेष अनुष्ठान करना चाहते हैं उसकी जानकारी हम प्रभु शरणम् एप्प में देंगे. प्रभु शरणम् एप्पस डाउनलोड कर लीजिए.

अक्षय तृतीया के दिन आप कौन कौन सी शुभ चीजें घर ला सकते हैं-

पूजा के लिए-रुद्राक्ष, हत्था जोड़ी, श्वेतार्क गणपति, रक्त गूंजा, श्री यन्त्र व पारद शिवलिंग लाने के लिए यह तिथि विशेष रूप से अच्छी कही गई है.
साधारण वस्तुएं-ताम्बे की थालियाँ लोटा, सोने चाँदी के आभूषण व बर्तन, श्रृंगार अथवा सौंदर्य प्रसाधन खरीदने के लिए भी दिन उत्तम कहा गया है.

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