अक्षय तृतीया को सबसे पवित्र मुहूर्त में माना जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा होती है. कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना सबसे लाभदायक बताया गया है. कनकधारा स्तोत्र के साथ ही अक्षय तृतीया कथा भी अवश्य सुननी चाहिए.

अक्षय तृतीया की व्रत कथा

भगवान श्रीविष्णु और महालक्ष्मी का ध्यान कर इस व्रत का संकल्प करना चाहिए. श्रीकृष्ण का चंदन से विशेष शृंगार करना चाहिए. मा लक्ष्मी को उत्तम फल-फूल, सुंगध, मिष्ठान्न अर्पित करना चाहिए.

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इस दिन के व्रत में नमक का त्याग कर दें. रूचि के अनुसार फलाहार कर सकते हैं. मीठे अन्न जैसे खीर आदि भी ग्रहण कर सकते हैं. बस नमक से परहेज रखें. कनकधारा स्तोत्र का पाठ अवश्य करें. दिन में भी करें और प्रदोष काल में भी.

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व्रत की कथाः-

बहुत पुरानी बात है, धर्मदास अपने परिवार के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था. वह बहुत ही गरीब था. वह हमेशा अपने परिवार के भरण – पोषण के लिए चिंतित रहता था. उसके परिवार में कई सदस्य थे. धर्मदास बहुत धार्मिक पृव्रत्ति का व्यक्ति था.

एक बार उसने अक्षय तृतीया का व्रत करने का सोचा. अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर उसने गंगा में स्नान किया. फिर विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना एवं आरती की.

इस दिन अपने सामर्थ्यानुसार जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि वस्तुएँ भगवान के चरणों में रख कर ब्राह्मणों को अर्पित की. यह सब दान देख कर धर्मदास के परिवार वाले तथा उसकी पत्नी ने उसे रोकने की कोशिश की .

उन्होने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे देगा, तो उसके परिवार का पालन- पोषण कैसे होगा.

फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया. उसके जीवन में जब भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया.

प्रत्येक बार धर्मदास ने विधि से इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किया. बुढ़ापे का रोग, परिवार की परेशानी भी उसे, उसके व्रत से विचलित नहीं कर पायी.

इस जन्म के पुण्य प्रभाव से धर्मदास ने अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म लिया.

कुशावती राजा बहुत ही प्रतापी थे. उनके राज्य में सभी प्रकार का सुख, धन, सोना, हीरे, जवाहरात, संपत्ति की किसी भी प्रकार से कमी नहीं थी. उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी.

अक्षय तृतीया के पुण्य प्रभाव से राजा को वैभव एवं यश की प्राप्ति हुई, लेकिन वे कभी लालच के वश नहीं हुए एवं अपने सत्कर्म के मार्ग से विचलित नहीं हुए. उन्हें उनके अक्षय तृतीया का पुण्य सदा मिलता रहा.

जैसे भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा की वैसे ही जो भी व्यक्ति इस अक्षय तृतीया की कथा का महत्त्व सुनता है और विधि विधान से पूजा एवं दान आदि करता है, उसे अक्षय पुण्य एवं यश की प्राप्ति होती है.

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