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ऐसे में परशुराम ने पितरों को दिया अपना वचन पूरा करने की सोची. खून से भरे तालाबों में से नहाकर निकले परशुराम ने जब पितरों को अपने शत्रुओं के रक्त से अर्ध्य दिया था तो वे उपस्थित हो गये थे.

उन्होंने परशुरामजी की वीरता की सराहना करने के साथ कहा कि प्रतिशोध और हिंसा ठीक नहीं. पितरों ने परशुराम को आदेश दिया कि तुम अपने इस कर्म का प्रायश्चित्त करो. पहले इसका समापन यज्ञ करो, दान दो फिर तीर्थयात्रा के बाद तप करो.

परशुरामजी को यह भली भांति याद था. परशुराम ने सबसे पहले विश्वजेता और फिर अश्वमेध यज्ञ करने की ठानी. विश्वजेता यज्ञ सफलता पूर्वक संपन्न कराया और उसके बाद सबसे बड़े अश्वमेध यज्ञ की तैयारी की.

समूची धरती के स्वामी का यज्ञ था सो इसे अति विशाल स्तर पर होना था. यज्ञ में सभी ऋषि, मुनि और छोटे-छोटे राजा आए. कश्यप मुनि यज्ञ के मुख्य पुरोहित बने. यज्ञ पूरा होने के बाद परशुराम की बारी दक्षिणा देने की थी.

परशुरामजी ने सबसे पहले महर्षि कश्यप से पूछा कि उन्हें क्या दक्षिणा चाहिए? कश्यप चाहते थे कि परशुराम धरती से दूर रहें. उन्हें भय था कि बचे-खुचे क्षत्रप पुनः सक्रिय होंगे. उन्होंने यदि फिर से कुछ अनुचित किया तो परशुराम एक बार फिर रक्तपात को तैयार हो जाएंगे.

कश्यप ने परशुराम से कहा- मुझे आपके द्वारा जीती हुई सारी धरती चाहिए.

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    • अभी यह आईफोन के लिए नहीं है. जल्द ही उपलब्ध होगा. क्षमाप्रार्थी हैं.

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