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भगवान चतुर्दशी की सुबह अपने महल में लौटकर आए थे जहां उनकी पत्नियों ने उन्हें सुगंधित जल से स्नान करवाया तथा इत्र का छिड़काव किया ताकि नरकासुर के शरीर की दुर्गन्ध भगवान के शरीर से चली जाए.

ऐसी मान्यता है कि इसी कारण नर्क चतुर्दशी के दिन सायंकाल में स्नान की परम्परा आरम्भ हुई. इसलिए नरक चतुर्दशी की सुबह को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है. इस दिन प्रातःकाल हल्दी और चंदन के उबटन से स्नान करने पर रूप-सौंदर्य बढ़ता है.

रूच चतुर्दशी की प्रात:काल स्नान का विशेष महत्व होता है. सूर्योदय से पूर्व स्नान करें. इससे शरीर में दिव्य शक्ति का संचार होता है और कई प्रकार के रोगों से छुटकारा प्राप्त होता है.

स्नान से पूर्व वरुण देवता का स्मरण करते हुए जल में हल्दी व कुंकुम डालकर स्नान करें. मान्यता यह है कि इस दिन स्नान से शुद्ध होकर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने से पापों का क्षय होता है और रूप में निखार आता है.
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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