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भगवान श्रीराम पंचवटी में वनवास काट रहे थे. प्रभु को आनंद मिले इसलिए वनदेवी ने अपना संपूर्ण ऋंगार किया. वन की शोभा इतनी रमणीय हो गई कि जैसे चिरवसंत हो.

पेड़ों में सुंदर-सुगंधित फूल आए. माता सीता भी वनदेवी के सौंदर्य पर मुग्ध थीं. भगवान श्रीराम ने सबसे सुंदर फूलों को चुना और एक सुंदर माला बनाकर सीताजी को पहना दी.

प्रभु के वनवास की चर्चा देवलोक में होती थी. इंद्रपुत्र जयंत उसे सुना करता था. उसे भरोसा न होता था कि श्रीहरि अवतार लें और समय वन में काटें. उसने उनकी शक्ति की परीक्षा लेने की सोची.

समुद्र मंथन से निकले अमृत को असुरों से बचाने के लिए देवताओं ने अमृत कलश लेकर भागने को कहा था. वह कलश लेकर भागा था और असुरों को खूब परेशान किया था.

इस के लिए देवों ने उसकी सराहना की थी. जयंत को अभिमान हो गया कि वह पवनवेग से चलता है.

अभिमान इतना बढ़ा कि उसने स्वयं श्रीराम की परीक्षा लेने की सोच ली.

क्षुद्र बुद्धि जयंत कौए का वेश धरकर पंचवटी में आया और उसी वृक्ष पर आ बैठा जिसके नीचे प्रभु बैठे थे. वह आज श्रीराम की शक्ति की परीक्षा लेने आया था.

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