शुकदेव ने परीक्षित को कथा सुनानी जारी रखी. सृष्टि निर्माण के आरंभ में ब्रह्मा की उत्पत्ति और उनका उद्देश्य बताकर, उन्होंने ब्रह्मा की संतानों के बारे में बताना शुरू किया.

मनु और शतरूपा ने ब्रह्मा के आदेश से संतान उत्पन्न किया. उनकी पांच संतानें हुई- प्रियव्रत और उत्तानपाद दो पुत्र और आकूति, देवहुति एवं प्रसूति तीन कन्याएं.

ब्रह्मा के पुत्र कर्दम परम ज्ञानी और माया से परे थे, किन्तु पिता ने सृष्टि विस्तार के लिए संतान पैदा करने का आदेश कर दिया.

पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए कर्दम ने श्रीहरि विष्णु का घोर तप किया. नारायण प्रकट हुए और वर मांगने को कहा.

कर्दम बोले- आपके दर्शन के बाद मांगने को कुछ शेष नहीं रहता फिर भी आपकी ही प्रेरणा से पिता ने संतान उत्पन्न करने का आदेश दिया है.

इसके लिए एक स्त्री चाहिए. हे श्रीहरि यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे ऐसी पत्नी के रूप में ऐसी गुणवान स्त्री दें जिसके गर्भ से स्वयं आप जन्म ले सकें.

बद्धिमान कर्दम ने एक साथ दो वर मांग लिए. उत्तम पत्नी और पुत्र के रूप में स्वयं नारायण. श्रीहरि इस बात से प्रसन्न होकर भाव विभोर हो गए.

भाव विभोर होने से उनकी आंखों से अश्रु बूंदें गिरी जिससे बिंदुसार नामक दिव्य जलाशय बना. श्रीहरि ने कहा- मनु और शतरूपा की पुत्री देवहूति से विवाह करो. मैं पुत्र रूप में आऊंगा.

उधर मनु को ईश्वर ने प्रेरणा दी कि वह देवहूति का विवाह कर्दम से कर दें. मनु पत्नी शतरूपा और बेटी देवहूती के साथ कर्दम के आश्रम आए.

अनेक वर्षों तक श्रीहरि की साधना करने के कारण कर्दम का शरीर तेजस्वी हो गया था. उनके मुखमंडल पर एक दिव्य आभा थी. देवहूति उनका रूप देखकर मुग्ध हुईं.

मनु ने कर्दम से कहा- मेरी पुत्री देवहूति ने नारद से आपके बारे में सुना है तब से वह आपसे मिलने की इच्छुक है. मैं चाहता हूं कि आप उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करें.

कर्दम बोले- जिसके रूप सौंदर्य पर मोहित होकर विश्वावसु गंधर्व अपनी चेतना खोकर विमान से गिर पड़े थे, ऐसी परम गुणवान कन्या से विवाह करना मेरा सौभाग्य है.

मैं विवाह को तो तैयार हूँ, किन्तु एक शर्त है. जब देवहूति को संतान प्राप्ति हो जाएगी उसके बाद मैं संन्यास आश्रम में जाकर तप आरंभ करूंगा.

देवहूति की सहमति पर कर्दम के साथ उनका विवाह हो गया. उसके बाद मनु और शतरूपा लौटकर उस स्थान पर आए जहां वराह अवतार श्रीहरि के शरीर से कुछ बाल गिरे थे. दोनों ने वहां यज्ञ कराया.

कर्दम फिर से अपने ध्यान आदि में लग गए और देवहूति उनकी सेवा करती रहीं. पति की सेवा में कई युग बीत गए. उनका यौवन समाप्त हो गया पर वह पति की सेवा करती रहीं.

कर्दम की समाधि खुली तो उन्हें अपनी देवहूति के वृद्धावस्था का आभास हुआ. समय के साथ वह भी वृद्ध हो रहे थे. सेवा से प्रसन्न कर्दम ने देवहूति से वरदान मांगने को कहा.

देवहूति ने उनसे संतान प्राप्ति की इच्छा प्रकट की. कर्दम ने योगशक्ति से एक ऐसा विमान बनाया जिसके अंदर पूरा नगर बसा था, जिसमे सभी सांसारिक सुविधाएं थीं.

कर्दम, देवहूति के साथ उस विमान में सवार होकर बिन्दुसार में स्नान करने गए. नारायण के अश्रुओं से बने इस तीर्थ में स्नान करते ही दोनों फिर से युवा हो गए.

यौवन को फिर से प्राप्त करने के बाद दोनों विमान में सवार हुए. विमान कई वर्षों तक अंतरिक्ष में भ्रमण करता रहा और दोनों गृहस्थ आश्रम का आनंद लेते रहे.

उसी दौरान देवहूति नौ परम तेजस्वी पुत्रियों कला, अनुसूया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरूंधति और शांति की माता बनीं.

नौ कन्याओं के पैदा होने के बाद कर्दम ने कहा- नौ पुत्रियां हुईं लेकिन नारायण अभी तक नहीं आए. हमें नारायण की आराधना करनी चाहिए.

दोनों ने कई वर्षों तक व्रत उपवास से श्रीहरि को प्रसन्न करने लगे. अंततः नारायण देवहूति के गर्भ में आए. गर्भस्थ नारायण की स्तुति करने ब्रह्मा अपने साथ नौ ऋषियो को लेकर आए.

ब्रह्मा ने कर्दम को बताया कि उनके पुत्र रूप में आकर नारायण, संसार को सांख्य योग की शिक्षा देंगे और कपिल मुनि नाम से प्रसिद्ध होंगे.

ब्रह्मा ने कर्दम को कहा कि उनके साथ आए ब्राह्मणों से वह अपनी पुत्रियों का विवाह कर दें. कर्दम और देवहुति की नौ कन्याओं का विवाह नौ तेजस्वी मुनियों संग हुआ.

कला का विवाह मारीच से, अनुसूया का अत्रि से, श्रद्धा का अंगिरा से, हविर्भू का पुलत्स्य से, गति का पुलह से, क्रिया का कृतु से, ख्याति का भृगु से, अरुंधति का वशिष्ठ से और शान्ति का अथर्व से विवाह हुआ.

नौ कन्याएं अपने पतियों के संग चली गयीं. कर्दम और देवहूति अपने आश्रम में रहते हुए नारायण अवतार सुपुत्र के जन्म की प्रतीक्षा करने लगे.

कल पढ़िए देवहूति के गर्भ से नारायण रूप कपिल मुनि का जन्म और देवहूति द्वारा अपने पुत्ररूपी प्रभु से साख्य ज्ञान चर्चा.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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